अधूरी पनबिजली सह सिंचाई परियोजना और पर्यावरण

    हम बड़े-बड़े सपने देखते हैं, बड़ा सोचते हैं, बड़ी-बड़ी बाते करते हैं, बड़ी-बड़ी योजनायें भी बनाते हैं लेकिन उन्हें शायद ही पूर्णता तक पंहुचा पाते हैं. जब पटना का गाँधी सेतु बना तो इसके बारे में काफी बड़ी-बड़ी बातें कही गयीं, लेकिन दुःख के साथ कहना है कि एक सौ वर्ष की आयु वाला यह नामी-गिरामी पुल मात्र तेईस साल में ही बूढ़ा हो गया. यह हमारी कमजोर कार्य संस्कृति को दर्शाता है. हमारी सरकार ने कई बड़ी-बड़ी पनबिजली योजनायें बनायीं और कई को पूरा भी किया गया तथा कई योजनायें तो करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी अधूरी ही रह गयीं। कोयल-कारो पनबिलजी बिजली योजना तो स्थानीय विरोध के कारण अरबों रुपये खर्च करने के बाद बन्द ही कर दी गयी. यहाँ मैं झारखण्ड के लातेहार जिला के दक्षिणी-पश्चिमी किनारे पर अवस्थित उत्तर कोयल नदी पर प्रस्तावित मण्डल सिंचाई सह पनबिजली परियोजना के बारे में उल्लेख करना चाहता हूँ. यह नदी गुमला जिला से निकल कर नेतरहाट पहाड़ नीचे से गुजरती हुई मण्डल और मेदनीनगर होते हुए हैदरनगर के पास नबीनगर के निर्माणाधीन दो बड़े ताप बिजली परियोजनाओं के पहले ही सोन नदी में मिल जाती है. पुनः सोन नदी पटना से करीब पच्चीस किलो मीटर पश्चिम में गंगा नदी में मिल जाती है.
    यह परियोजना तब अधिक चर्चा में आयी थी जब 1997 के बरसात महीने में इस परियोजना के अधीक्षण अभियन्ता श्री बैद्य नाथ मिश्र की निर्मम हत्या उनके इसी परियोजना की कॉलोनी स्थित उनके कार्यालय से खींच कर इसके बांध पर लाकर दिन में सरेआम कर दी गयी थी. शायद संयुक्त बिहार के किसी कार्यरत इतने बड़े अधकारी की ड्यूटी पर की गयी हत्या की यह पहली घटना थी. इस बड़े इंजीनियर साहेब की बेटी और दामाद भी दिल्ली में बड़े पदों पर काबिज थे. इसलिये भी कुछ समय के लिये इस घटना से दिल्ली भी हिल सी गयी थी. हत्यारों ने इसके बांध पर अनजान कारणों से विस्फोट भी किया था. हुआ यह कि अधिक वर्षा हो जाने से और एक बड़े गाछ के इसके बांध की तलहटी में बने इसके जल निकास मार्ग में फंस जाने से इस परियोजना के डूब क्षेत्र में अवस्थित दर्जनों गावों में अचानक पानी भर गया. इस जल-जमाव के कारण दर्जनों पशु मर गये और भी बहुत नुकसान हुआ था. शायद इस परियोजना के डिज़ाइन बनाने वाले धुरन्धर इंजीनियरों ने भी इस अनहोनी घटना की कल्पना नहीं की होगी। कुछ दिनों के बाद यह मामला शान्त हो गया।
     पिछली सदी के सत्तर के दशक के प्रारम्भ से यह परियोजना प्रारम्भ हुई थी लेकिन बताया जाता है कि आज भी यह परियोजना अधूरी ही है. इस परियोजना के पूरा हो जाने पर 25 मेगा वाट बिजली का उत्पादन होता, झारखण्ड के पलामू जिला के लगभग दो हजार एकड़ और बिहार के औरंगाबाद गया जिलों के हजारों एकड़ जमीन पर निश्चित सिंचाई होती। साथ ही मेदनीनगर शहर में ग्रीष्म-काल में लगभग पॉँच डिग्री सेल्सियस तापमान कम हो जाता, जिससे गर्मी में लोगों को बड़ी राहत मिलती। बिजली के उत्पादन होने से आसपास के इलाकों में आर्थिक गतिविधि में काफी वृद्धि होती जिससे लोगों की समृद्धि बढ़ती।
कहा जाता है कि नीचे लिखे कारणों से इसका काफी कार्य हो जाने के बाद भी यह परियोजना लगभग चालीस साल से अधूरी पड़ी हुई है:--
(क) फण्ड डायवर्सन:- हर साल इस परियोजना हेतु बजट कुछ न कुछ राशि जरूर आवंटित होती रही है लेकिन इस परियोजना का पैसा प्रभावशाली नेतागण अपनी पसन्द की अन्य योजनाओं में लगाते रहे. बाहरी नेता लोग इसलिये भी ऐसा करने में सफल रहे क्योंकि मण्डल परियोजना के आसपास कोई प्रभावशाली नेता पनप ही नहीं पाया।
(ख) स्थानीय लोगों का कहना है कि इस परियोजना से उत्पादित बिजली तो शहर के लोगों को मिलेगी; इनके घरों में तो पूर्व की तरह ढिबरी और लालटेन ही जलने वाला है यानि इनके घरों में तो अँधेरा ही रहेगा. इसी तरह इस परियोजना के पानी से इनका जमीन और गांव डूबेगा जबकि यहाँ से सौ मील दूर बिहार के लोगों के खेतों की सिंचाई होगी।
(ग) इस परियोजना के डूब क्षेत्र के दर्जनों प्रभावित गावों के लोगों का कहना है कि इनके बाप-दादाओं को पिला-खिला कर भूमि-अधिग्रहण का काफी कम पैसा दिया गया है और इन लोगों के पुनर्वास की भी कोई व्यवस्था नहीं की गयी है.
(घ) इस परियोजना के डूब क्षेत्र में सैंकड़ों एकड़ वन क्षेत्र भी पड़ता है जिसका हस्तानान्तरण अभी तक नहीं हुआ है.
नीचे लिखे कारणों से लगभग भुला दी गयी इस परियोजना का महत्व अचानक बढ़ गया है--
(1) बिहार के औरंगाबाद जिले के नबीनगर में दो कोयला आधारित बड़े ताप बिजली घर का निर्माण हो रहा है। इन दोनों ताप बिजली कारखाना में बिजली उत्पादन और वहाँ बसने वाले नये शहर हेतु काफी पानी की आवश्यकता होगी। इस पानी की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु मण्डल पनबिजली परियोजना को चालू करना समय की आवश्यकता हो गयी है।
(2) गंगा जल-परिवहन प्रारम्भ होने वाला है। अब पटना से साहेबगंज तक गंगा नदी में साल भर पानी का प्रवाह बनाये रखने हेतु मण्डल पनबिजली परियोजना को चालू करना जरुरी हो गया है।
(3) मोदी सरकार सौर ऊर्जा को बड़े पैमाने पर अपनाने हेतु पहले ही अपना संकल्प व्यक्त कर चुकी है। सौर-ऊर्जा से बिजली उत्पादन में प्रति यूनिट खर्च में निरन्तर कमी हो रही है, यानि अब यह सरकार तेजी से नयी-नयी सौर-ऊर्जा परियोजनाओं को मंजूरी दे रही है। SECI और NTPC इस ओर तेजी से अग्रसर है। अब यह सर्वविदित है कि पनबिजली परियोजनाओं को बड़ी बैटरी के रूप में भी जाना जाने लगा है, यानि दिन भर बिजली सौर-ऊर्जा से और रात को बिजली पनबिजली परियोजना से मिल सकती है.
(4) पलामू, औरंगाबाद और गया जिलों के किसानों की सिंचाई की मांग को अब अधिक दिनों तक लटकाये रखना कठिन हो रहा है। अतः सिंचाई हेतु भी अब इस मण्डल पनबिजली सह सिचाई योजना को चालू करना जरुरी हो गया है।
पर्यावरण पर इस परियोजना का सकारात्मक प्रभाव:- अभी भी निश्चित रूप यह नहीं कहा जा सकता है कि यह परियोजना कब पूरी होगी? लेकिन अगर यह परियोजना पूरी हो गयी तो इस के रास्ते में पड़ने वाले इलाकों में पानी की कमी की समस्या समाप्त हो जायेगी। अभी इसके रास्ते में साल में करीब छः महीना नदी के बालू के खुले में आ जाने से बालू तपने लगता है, जिससे इसके किनारे पर बसने वाले लोगों को तीव्र गर्मी का सामना करना पड़ता है. इसके पूरा हो जाने से नदी में वर्ष भर पानी रहेगा; बालू नहीं तपेगा जिससे निवासियों को भीषण गर्मी से कुछ छुटकारा मिलेगा। पन-बिजली के उत्पादन होने से जीवाश्म ईंधन पर दबाव कम होगा, जिससे प्रदूषण कम होगा। सिंचाई होने से हरियाली बढ़ेगी, जिससे ग्रीन हाउस गैस में कमी आयेगी। इससे भी ग्लोबल वार्मिंग से निपटने में मानवजाति को मदद मिलेगी। लागग चालीस साल से अधूरी पड़ी इस पन-बिजली सह सिंचाई परियोजना को पूरा करने हेतु आवाज उठानी चाहिये।
अब चूँकि औरगांबाद(बिहार) में दो बड़े-बड़े कोयला आधारित ताप बिजली घर बन रहे हैं. जिनके लिये पानी की आवश्यकता होगी। सोन नदी में अब और पानी की गुंजाइश नहीं है. अतः अब सरकार के लिये भी इस मण्डल पनबिजली परियोजना को पूरा करना जरुरी हो गया है. जब यह परियोजना अपनी गति पकड़ेगी तो इसके डूब क्षेत्र में पड़ने वाले दर्जनों गावों के लोगों के पुनर्वास की मांग जोड़ पकड़ेगी। अभी तक डूब क्षेत्र के लोग खेती, पशुपालन और आस-पास के जंगल से जीविकोपार्जन करते रहे हैं. प्रभावित ग्रामीण अपने उचित पुनर्वास की आस लगाये बैठे हैं. अगर उनके बिना पुनर्वास की व्यवस्था किये ही इस परियोजना को पूरा करने का प्रयास किया गया तो प्रशासन का पर्यावरण बिगड़ सकता है.

नोट:- यह ब्लॉग मेरे अपने अनुभव और इस परियोजना से परोक्ष रूप से जुड़े लोगों से समय-समय पर होने वाली अनौपचारिक चर्चाओं पर आधारित है. इसके तथ्यों से असहमति रखने वालों से मैं क्षमाप्रार्थी हूँ. पाठकों की खट्टी-मीठी टिपणियों का सदैव स्वागत रहेगा। 
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