काश, युद्ध कम से कम एक साल के लिये और टल जाता!

    अभी प्रायः सभी मोर्चों पर हमारी प्रगति अच्छी हो रही है और उम्मीद है कि प्रगति की रफ़्तार और बढ़ेगी।काश, युद्ध एक साल और टल जाता। तब हमारे पास काम भर बराक-8, तेजस, ब्रह्मोस, अरिहन्त, धनुष और कई प्रकार के मिसाइलें आदि होते तथा करीब एक माह तक कारगर युद्ध लड़ने लायक पर्याप्त मात्रा में गोला-बारूद  और पेट्रोलियम उत्पाद भी हो जाते; कुछ परजीवी और पाकिस्तान परस्त मीडिया कर्मी और सिने कर्मी भी कम होते; पाकिस्तानी जासूसों के संरक्षण देने वाले भी कम होते; आवश्यक वस्तुओं का उचित भण्डारण भी पूरे देश में होता।
    हमें यह भी नहीं भूलना चाहिये कि हमारे देश के अन्दर भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो हमारे दुश्मन को कई तरह से मदद करते रहते हैं. हम प्रॉक्सी वॉर भी बहुत दिनों से झेल रहे हैं. हमारे देश के कथित सेकुलरिस्ट हमारे ही लोगों को सरकार के विरुद्ध भड़काते रहते हैं. हमें उग्रवाद और अलगाववाद भी झेलने पद रहे हैं. अंदरूनी दुश्मन से निपटने हेतु हमें अपने आपराधिक न्याय प्रणाली को समय के अनुसार और मजबूत बनाते रहना होगा। इन सब के लिये हमारे देश को कुछ और समय चाहिये।
    यह भी हो सकता है कि तबतक बलुचिस्तानी भी काफी मजबूत हो गये रहेंगे और डूरण्ड रेखा का अस्तित्व भी और कमजोर हो गया होगा और पाकिस्तान को खैरात देनेवाले भी मानवता विरोधी ताकतों को अच्छी तरह से पहचान लेंगे।
    WW-2 से लेकर अब तक सभी युद्ध काफी महँगाई बढ़ाने वाले भी साबित हुए हैं. अगर हम जल्दबाजी में युद्ध के अखाडा में उतरेंगे तो सबसे ज्यादा फायदा लालची व्यापारियों को होगा क्योंकि जरुरी वस्तुओं के अवैध भण्डारण कर कमी का लाभ उठाने का वे लोग कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। काला धन धारकों का अभी भी प्रभाव अपेक्षा के अनुरूप कम नहीं हुआ है. वे लोग सोना और खरीदेंगे, युद्ध का उन्माद बढ़ावेंगे और युद्ध कराकर ही दम लेंगे। और जब युद्ध समाप्त होगा तो अपना ख़रीदा गया सोना को बेंच कर और Real Estate में किये गये भारी मात्रा में निवेश का लाभ उठाकर आसानी से अपना धन काफी बढ़ा लेंगे।
    आईये अब युद्ध के सम्बन्ध में प्रसिद्ध कुछ उक्तियों को देख लें--
1. "युद्ध एक प्राकृतिक कतरनी से जिससे प्रकृति अपने बागवानी में उग आये खरपतवारों को साफ करते रहती है।"
2. "दो युद्धों के बीच के समय को शांति काल कहते हैं। इस काल-खण्ड में अगले युद्ध की तैयारी की जाती है"।
3. नादिर शाह से लेकर अब तक उसके वंसज सैनिकों के शवों पर अपनी बर्बरता दिखाते रहे हैं. भले ही सैनिकों के सिर को काट लेना एक युद्धापराध है लेकिन आज भी सैनिकों के शवों के सिर काटकर अपने आका के पास ले जाने वालों को पुरष्कृत किया जाता है".
4. "पतन की राह पर चल पड़े किसी देश को युद्ध एक कोरामिन की तरह दवाई है, जिसके सेवन से अगर वह देश युद्ध जीत गया तो उस देश का चारित्रिक उत्थान हो जायेगा और उसकी तरक्की भी"।
5. "युद्ध की समाप्ति पर युद्ध से पीड़ित और बची हुई अगली पीढ़ी लड़े गये युद्ध की रणनीतिक कमियों पर चर्चा बहुत दिनों तक करती है।"
6. अगर शान्ति की पतली गली भी उपलब्ध हो तो उस पर चलना अच्छे हाई वे पर चलने से अच्छा है,
7. राजनैयिक प्रयासों की असफलता या राजनैयिक निष्क्रियता का परिणाम भी युद्ध के रूप में जाना जाता है.
8. सामान्य लोग युद्ध के समय मौत और विनाश के नृत्य को देखने को अभिशप्त होते हैं.
    यहाँ पर किसी की कही गयी बातें को उद्धरित करना भी जरुरी लगता है जो इस प्रकार है--(#CopyPaste)
"जब ‪‎कृष्ण‬ अंतिम कोशिश के रूप में शांति संधि के लिए ‪‎हस्तिनापुर‬ जा रहे थे ...
तो ‪द्रोपदी‬ ने बड़ी ही ‪‎व्याकुलता‬ से कृष्ण से पूछा था कि केशव, तो अब ‪युद्ध‬ नहीं होगा" !!
कृष्ण ने उस समय द्रोपदी से कहा था " तुम मुझ से ज्यादा ‪दुर्योधन‬ पर विश्वास रखो, वो मेरी हर कोशिश को नाकाम कर देगा,
इसलिए, हे द्रोपदी, निश्चिंत रहो, युद्ध तो होगा ही‬
तो हे ‪भारती पुत्रों आप सब भी ‪‎नरेंद्र मोदी‬ से ज्यादा ‪‎पाकिस्तान‬ पर ‪विश्वास‬ रखो...
युद्ध तो होगा ही और दुर्योधन तथा बाकी कौरवों के तरह पाकिस्तान भी समूल नष्ट/बर्बाद होगा ही "।
    शायद तबतक दुनिया यह समझ लेगी कि हम शान्ति के पुजारी हैं, पर साथ ही साथ विध्वंश के कलाकार भी हैं.   
    क्या यह सही नहीं है कि दो साल पूर्व की तुलना में आज हमारा देश ज्यादा तेजस लड़ाकू विमान बना रहा है; DRDO ज्यादा संख्या में और पहले से ज्यादा घातक मिसाइल का परिक्षण कर रहा है; ब्रम्होस का विकास और निर्माण भी तेजी से हो रहा है. अन्य क्षेत्रों में भी हमारी प्रतिरक्षा की तैयारी अच्छी चल रही है. कहा जाता है कि एक मजबूत देश युद्ध को जीतता है; उसे अपने आन्तरिक मोर्चों पर ज्यादा नहीं लड़ना पड़ता है, उससे ज्यादा मजबूत देश युद्ध को टालता है और सबसे ज्यादा मजबूत देश वह माना जाता है, जिसके तरफ दुश्मन आँख उठाने के पहले भी दस बार सोचता है. इन सब बातों से स्पष्ट है कि यदि युद्ध एक साल के लिये और टल जाता तो शायद हमें और हमसे वैमनस्य रखने वालों को युद्ध की विभीषिका नहीं झेलनी पड़ती।
    इधर मीडिया में हमारे देश को तोड़ने के षड्यन्त्र के समाचार भी आ रहे हैं. युद्ध के समय हमें आन्तरिक मोर्चों पर भी लड़ना होगा। मानवाधिकारवादी इंडियन आर्मी की छोटी-छोटी कार्यवाई पर इस तरह से प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं मानों हमारी सेना इन मानवाधिकारवादियों की नहीं हो. जो हमारी सेना को इंडियन आर्मी से सम्बोधित करता हो; हमारी सेना की कार्यवाई के कोलैटेरल डैमेज के औचित्य को नकारता हो वैसे लोगों को कमजोर किये बिना युद्ध के अपेक्षित परिणाम हम कैसे प्राप्त करेंगे।
    युद्ध की स्थिति में अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के मूल्य बढ़ जायेंगे और उसी अनुरूप यातायात महंगे हो जायेंगे। ऐसी स्थिति में भारत, पाकिस्तान, चीन और जापान सहित सभी कच्चे तेल के आयातक देशों की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है. हमें इस बात की उपेक्षा नहीं करनी चाहिये।    
    अभी से ही युद्ध के बादल मंडराने लगे हैं। बिजली भी रुक-रुक कर कड़क रही है। बहुत से लोग युद्ध टालने का हर सम्भव प्रयास कर रहे हैं। ऐसा बहुत बार हुआ है कि राजनैयिक प्रयासों से युद्ध के काले बादल भी छंट गये हैं. आप सब भी अपने स्तर से युद्ध टालने का प्रयास करें। खैर युद्ध नहीं टला तो हमें नागरिक सुरक्षा तन्त्र को जितना जल्दी हो नागरिक स्तर पर ही मजबूत करने होंगे। बिना नागरिक सुरक्षा तन्त्र और को मजबूत किये युद्ध में विजय की कामना एक दिवा-स्वप्न भी साबित हो सकती है.
    हमारे सभी प्रमुख नेता कह चुके हैं कि भारत युद्ध नहीं चाहता है. अब दूसरे देश को भी हमारे घरेलु मामलों में हस्तक्षेप बन्द करना चाहिये। साथ ही आतंकवाद का वित्त-पोषण और परोक्ष समर्थन भी बन्द होना चाहिये। सभी जानते हैं कि युद्ध की प्रकृति आग की तरह होती है. आग लगाना आसान होता है लेकिन आग बुझाना मुश्किल। आग की तरह युद्ध की सम्भावित क्षति का पूर्वानुमान लगभग असम्भव होता है. अतः युद्ध की अभिलाषा रखने वाले पक्ष को आग की तरह ही युद्ध की विभीषिका को समझना चाहिये। फिर भी यदि युद्ध थोपा गया तो यथासम्भव आत्मरक्षा का अधिकार तो हमारे देश को भी मिलना चाहिये।          
https://Twitter.com/BishwaNathSingh

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