जंगल में मोर नाचा; किसने देखा?

     बहुत से लोग अच्छा वेतन छोड़कर कम वेतनमान में सरकारी नौकरियों में योगदान करते रहे हैं। सबके अपने-अपने तर्क हैं। एक ने बड़ा ही अजीब तर्क दिया। उसका तर्क था- "जंगल में मोर नाचा; किसने देखा?". इस तरह के अनेकों तर्क सुने जाते रहे हैं. उन्ही तर्कों के आधार पर यह ब्लॉग प्रस्तुत किया जा रहा है.
     भले ही गैर प्रशासनिक पदधारियों का वेतन ज़्यादा हो, लेकिन छोटे बड़े सभी प्रशासनिक पदधारियों को उनके नौकरी कार्य-काल में ऊपरी कमाई के मौके(Scope) ज्यादा मिलते हैं. 
     छोटे बड़े सभी प्रशासनिक पदधारियों को सरकारी गाड़ी, बंगला, ड्राइवर, नौकर-चाकर आदि की सुविधा गैर-प्रशासनिक पदधारियों की तुलना में बहुत ज्यादा है. 
     प्रायः लोगों के माता-पिता को गैर-प्रशासनिक पदधारियों के माता-पिता को की तुलना में सस्ते में या कभी-कभी मुफ्त में चिकत्सीय सहायता उब्लब्ध हो जाता है. इसलिये भी माता-पिता अपने बच्चों को प्रशासनिक पदों पर भेजना पसन्द करते हैं. क्या कुछ मामलों में यह सही नहीं है कि नौकरी पा जानेवाले अपने मातापिता से ज्यादा ध्यान अपने कुत्तों पर देते हैं? 
     छोटे-बड़े प्रशासनिक पदों पर बहाल होते ही समाज और रिश्तेदारों में नौकरी पाने वालों की इज्जत बढ़ जाती है. अगर नौकरी पानेवाला कुंवारा हुआ तो उसका तिलक-दहेज़ की माँग भी आसमान छूने लगती है. लेकिन यह स्थिति गैर-प्रशासनिक पद पाने वालों की नहीं होती। इसलिये भी लोग अपने बच्चों को प्रशासनिक पदों पर भेजना ज्यादा पसन्द  करते हैं.
     छोटे-बड़े प्रशासनिक पदों पर कार्यरत लोगों के परिजन यदि कोई अपराध कर देते हैं तो बिना ठोस साक्ष्य के पुलिस भी उनके घरों में छापामारी करने से घबराती है.
     मुसलमान और अंग्रेज शासक अपने छोटे-बड़े मुलाजिमों के परिजनों के बहुत से अपराधों में सजा से बचाने में मदद करते रहे थे. यह नीति समाज को बाँटने में सहायक रही थी. अभी हमारा समाज मुसलमानों और अंग्रेजों की गुलामी की मानसिकता से उबर नहीं पायी है. अब उम्मीद है कि सोशल मीडिया इस गन्दी सामाजिक मानसिकता को बदलने में सहायक होगा।           
      ये तथ्य कुछ लोगों को गलत लग सकते हैं और उन्हें प्रशासनिक शक्तियां भी सच लिखने वालों को तबाह करने हेतु काफी है. पर सच को बहुत ज्यादा दबाया नहीं जा सकता है. 
नोट:- यह ब्लॉग मैंने अपने मित्र श्री दयाशंकर सिंह और कई अन्य लोगों से इस विषय पर की गयी चर्चा में उभरे तथ्यों और अपने अनुभव के आधार पर लिखा है. अगर किसी को इसमें आपत्ति हो तो मैं उनसे क्षमा-प्रार्थी हूँ.
इस ब्लॉग पर ट्विटर के पाठकों की खट्टी-मीठी टिप्पणियों का स्वागत रहेगा और उनकी सहमति से उनकी टिप्पणियों को इस ब्लॉग के नीचे लिखा जायेगा।
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Twitter Comments
1. @arunmahatojsr एक पुरानी मान्यता है -- "नौकरी करो सरकारी या बेंचो तरकारी।"
2.         
  

Comments

  1. आज का तात्कालिक सच यही है.

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