एलएमपी(Legal Medical Practitioner) और ग्रामीण स्वास्थ्य सेवायें।

     बहुत ज्यादा दिन की बात नहीं है करीब तीस-चालीस साल पहले ग्रामीण इलाकों के बाज़ारों में कोई न कोई डॉक्टर साहेब रहते थे. वे सभी डॉक्टर दरभंगा या कलकत्ता के मेडिकल स्कूलों से पढ़े होते थे.
    पिछली शताब्दी के सत्तर के दशक से अपने देश में खासकर BIMARU राज्यों में शहरीकरण की गति बढ़ने लगी. उस समय तक बिहार में पटना, राँची और दरभंगा में मेडिकल कॉलेज थे लेकिन वहाँ से लगभग तीन सौ डॉक्टर हर साल निकलते थे और सब के सब शहरों में ही खपने लगे. ग्रामीण इलाकों में भी प्रत्येक प्रखण्ड में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र(PHC) और सहायक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र(APHC) की स्थापना हुई और वहाँ चिकित्सक जाकर अपनी अच्छी सेवा भी देने लगे.
    जब से मेडिकल की पढाई का निजीकरण हुआ तब से ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा में कमी आने लगी. धीरे-धीरे प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र(PHC) और सहायक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र(APHC) से चिकित्सक गायब होने लगे. सरकार ने चिकित्सकों को ग्रामीण क्षेत्रों में भेजने के कई प्रयास किये लेकिन वांछित सफलता नहीं मिली। इसका मुख्य कारण ग्रामीण इलाकों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव रहा. अब तो प्रायः वे ही चिकित्सक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र(PHC) और सहायक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र(APHC) में बचे हैं, जिनमे सेवा-भाव अधिक है या जिनकी कोई पैरवी नहीं है. अब यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पैरवी वाले सरकारी चिकित्सक सिर्फ कागजों में ही ग्रामीण क्षेत्रों में दिखते हैं. इस बात की जानकारी सभी अथॉरिटी को रहती है लेकिन वे इस बिन्दु पर चुप्पी साधे रहते हैं और अनभिज्ञ भी बने रहते हैं. निजी प्रैक्टिस पर रोक लगाने का प्रयास सरकार द्वारा बहुत दिनों से की जाती रही है, लेकिन हर बार रोक लगाने वाले हारते रहे हैं.   
     धीरे-धीरे इस शून्यता को झौला-छाप डाक्टर(Quacks) भरने लगे. अब थोड़ा यह जानना जरुरी है कि झोला छाप डाक्टर कौन हैं और ये डॉक्टर कैसे बने? लोग बताते हैं कि बड़े डॉक्टर के यहाँ काम करने वाले ही कुछ दवाइयों का नाम और उनके उपयोग जानकर तथा सुई आदि देना सीखकर ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर झोला छाप डाक्टर बन जाते हैं. यह भी सच्चाई है कि लगभग आधी बिमारी समय के साथ ऐसे भी ठीक हो जाता है लेकिन ग्रामीण समझते हैं कि उनको  झोला छाप डाक्टर ने इलाज कर ठीक कर दिया है और इस तरह झोला छाप डाक्टर की विश्वसनीयता बढ़ती चली जाती है.
     बिहार और उत्तर प्रदेश में प्रखण्ड स्तर तक तो MBBS डॉक्टर पँहुच गये हैं लेकिन प्रखण्ड मुख्यालय अभी भी बहुत से गांवों से पन्द्रह-बीस किलो मीटर दूर हैं जहाँ झोला छाप डाक्टर का ही राज है. झारखण्ड में अभी भी सुधार की ज्यादा जरुरत है.
     इमरजेंसी के बाद बने देश के स्वास्थ्य मन्त्री रजनारायण ने हर ग्राम-पंचायत में एक-एक स्थानीय बेरोजगार को प्राथमिक उपचार आदि का प्रशिक्षण दिलाकर आवश्यक किट दिलाकर प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की व्यवस्था की थी जो उनकी सरकार चले जाने के साथ ही यह योजना भी काल के गर्त में समां गयी.
     स्वास्थ्य सेवाओं के आभाव में गरीब ग्रामीणों की जिन्दगी नारकीय लगती है. छोटी सी बिमारी भी समय पर इलाज नहीं होने से पीड़ित असमय ही कालकलवित हो जाता है. अशिक्षा और गरीबी लोगों अन्धविश्वासी बना देता है. लोग बिमारी को किसी पाप की सजा समझने लगते हैं.  
     इधर दूर-संचार की धमक ग्रामीण इलाकों में भी सुनायी दे रही है जो Tele-Medical Service की अवधारणा को अमली जामा पहना सकता है. फिर भी पुराने ज़माने की तरह मेडिकल स्कूल खोलकर स्वास्थ्य सेवा में दो साल का डिप्लोमा कोर्स प्रारम्भ किया जाता तो बेरोजगारी की समस्या का कुछ नियमित समाधान भी होता और दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को भी काफी लाभ होता।
नोट:- एलएमपी(Legal Medical Practitioner) का पुनर्जिवित विचार श्री बीएन मिश्रा साहेब, कुसुम विहार, राँची की है जिसे मैंने और लोगों से चर्चा कर एक ब्लॉग का रूप दिया है. इस ब्लॉग पर कोई भी खट्टी-मीठी टिपण्णी का सदैव स्वागत रहेगा। 
https://Twitter.com/BishwaNathSingh
Comments:-
1.BN Mishra: No MBBS Doctor wants to go to Rural places. If LMP(Legal Medical Practitioner) course is started Rural People may benefit much.
2.

Comments

Popular posts from this blog

मानकी-मुण्डा व्यवस्था और Wilkinson Rule

एक दादा का अपनी पोती के नाम पत्र

बिहार के पिछड़ेपन के कुछ छिपे कारण!