किसानों की कुछ ध्यान देने योग्य समस्यायें.....

हालांकि यूरिया की उपलब्धता और E-NAM के चालू होने से किसानों में ख़ुशी की लहर है, फिर भी किसान काफी समस्यायों से चिन्तित रहते हैं। कुछ समस्यायें और उनके निदान की चाहत निम्न प्रकार की हैं:-
1. सिंचित क्षेत्र के किसानों की मुख्य समस्या उनके फसल का उचित मूल्य नहीं मिलना है। बड़ी उम्मीद के साथ सरकार से किसान इस ओर टकटकी लगाये हुए हैं।
2. असिंचित क्षेत्र के किसान उम्मीद लगाये हुए हैं कि वर्षों लम्बित पड़ी योजनायें ही पूरी कर दी जायें तो किसानों की आमदनी बढ़ जायेगी।
3. किसान कम फसल से ज्यादा परेशान अधिक फसल हो जाने पर हो जाता है क्योंकि तब फसल का बाजार मूल्य काफी गिर जाता है।
4. फसल बीमा में नीलगाय, हाथी, बन्दर आदि जानवरों से हुए नुकसान को शामिल नहीं किया गया है। किसान चाहते हैं कि ऐसे नुकसान को भी बीमा योजना में शामिल किया जाये।
5. बहुत से किसान चाहते हैं कि गेहूं, धान, तिलहन, दाल आदि के भण्डारण क्षमता को बढ़ाया जाये ताकि उनके फसल बाजार में आने पर उनका मूल्य ज्यादा न गिरे।
6. आलू और प्याज के भण्डारण हेतु उचित मात्रा में कोल्ड स्टोरेज बनाया जाये।
7. जब खाद्यान्न और खाद्य तेलों की कमी होती है तब सरकार इन वस्तुओं के आयात करने में नहीं हिचकिचाती लेकिन फसल ज्यादा हो जाती है तब इनके निर्यात में संकोच किया जाता है या इस प्रश्न पर बिलकुल ही ध्यान नहीं दिया जाता। यह स्थिति अब बदलनी चाहिये। 
8. बाजारों में नकली बीज भरे रहते हैं। लुभावने पैकेट और दुकानदारों के बहकावे में आकर बहुत बार किसान नकली बीज खरीद लेते हैं और फसल में फूल, दाने या फल नहीं आने पर किसान बर्बाद हो जाते हैं। कई बार तो किसान आत्म हत्या भी करने पर मजबूर हो जाते हैं। ऐसे पीड़ित किसानों के फसल की बर्बादी पर भी उन्हें फसल बीमा का लाभ मिलना चाहिये।
तकनीकी समस्यायें:-
1.  पशुधन की घटती संख्या के साथ-साथ खेतों को गोबर और घर के Bio degradable waste का कम्पोस्ट खाद भी पंहुचना कम होते जा रहा है. परिणामतः खेत की जमीन में Humus की मात्रा भी कम होते जा रही है. Humus की कमी से खेतों की वाटर रिटेनिंग क्षमता भी कम होते जा रही है यानि पहले की तुलना में अब खेती में ज्यादा पानी की जरुरत पड़ने लगी है. इस कारण हर साल नहरों का अन्तिम छोड़(Tail End) सिकुड़ता जा रहा है. Humus की कमी को कुछ हद तक दूर करने हेतु मुख्य फसल के पहले ढैंचा का बीज लगाकर लगभग डेढ़ फीट का पौधा होते ही खेत को जोतकर मिट्टी में मिलाने की विधि को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
     Coco-peat(सूखे नारियल के रेशों को मशीन से कुतर कर बनाया हुआ लगभग 5-7 मिली मीटर के टुकड़े) को मिट्टी में मिलाकर मिट्टी के जल-संग्रहण क्षमता को बढ़ाया जा रहा है. पन्द्रह-बीस साल में Coco-peat सड़कर मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ायेगा। Coco-peat के उपयोग को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है. इसके बढ़ते उपयोग से नारियल की खेती को भी और लाभदायक बनाया जा सकता है. Coco-peat के निर्माण से रोजगार के अवसर में भी वृद्धि होगी।  
2. इजराइल में कम पानी में भी फूल और सब्जियों की अच्छी खेती की जा रही है. इस तरह की खेती को सफल बनाने हेतु लगभग एक फुट की गहराई तक की जमीन की मिट्टी को हटाकर पॉलिथीन के चादर बिछाकर उसपर पुनः मिट्टी डालकर खेत बना लिया गया. ऐसा करने से सिंचाई का पानी को पॉलिथीन एक फुट से गहरा जाने से रोक देता है जबकि पौधों के जड़ को भरपूर पानी मिलते रहता है. इस विधि से कम पानी में ही अच्छी खेती हो रही है.
     अपने देश में भी मौसमी फूल/ सब्जी और धान/गेहूं आदि कम गहराई वाले पौधों की जड़ें प्रायः आठ-नौ इंच से ज्यादा गहरा नहीं होता। अब कच्चा तेल की कीमत कम होने से पॉलिथीन शीट की कीमत भी कम हो रही है. अतः उचित शोध के बाद अपने देश में भी इस तकनीकि को अपनाया जाना चाहिये।
3. गेहूँ की खेती करने वाले अमरीका, कनाडा, रूस और ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में इसकी खेती ऊर्जा, मशीन और श्रम पर आधारित है. उन देशों में ऊर्जा और मशीन लगातार सस्ते हो रहे हैं और स्वचालन बढ़ने से श्रमिकों की संख्या घट रही है. इसके विपरीत हमारे देश में उन देशों की तुलना में ऊर्जा, मशीन और श्रमिक तीनों महँगे हो रहे हैं. परिणामतः हमारे कृषि उपज उनकी तुलना में हर साल महँगी होती जा रही है. ऐसे में हमारे देश के बड़े व्यापारी आयात-कर के बावजूद मुम्बई, चेन्नई आदि समुद्रतट के निकटवर्ती इलाकों में मुनाफा से प्रेरित होकर विदेशों के गेहूँ ही खरीदना पसन्द करेंगे और उसी अनुरूप हमारी कृषि कमजोर होती जायेगी।
    इसे अच्छी तरह से समझने के लिये The Oil Industry(development) Act 1974 को समझना जरुरी है. इस कानून के जरिये हमारे देश में उत्पादित कच्चे तेल पर 1974 में 60 रुपये प्रति टन कर लगाया गया. इस कर को 2012 में बढ़ा कर चार हजार पाँच सौ रुपये प्रति टन कर दिया गया. अगर इसे हम डॉलर और बैरेल में बदले तो $10/बैरल बैठता है. जिस देश में कच्चा तेल का आयात 85% से ऊपर हो और कच्चा तेल से बना डीजल से की गयी खेती अमरीका, कनाडा, रूस और ऑस्ट्रेलिया आदि देशों की खेती से हमारा किसान कैसे मुकाबला कर सकता है? घरेलु कच्चे तेल पर लगाया यह कर और मामले में सही हो सकता है लेकिन किसानी के परिप्रेक्ष्य में कभी सही नहीं कहा जा सकता। हो सकता है राजधानी के वातानुकूलित कमरे में बैठे अधिकारी सोचते हों कि इस देश में लगभग सत्तर प्रतिशत किसान हैं जो अपने खाने तथा अपनी अन्य जरूरतों की पूर्ति हेतु किसानी तो उनकी मज़बूरी है एवम शेष लगभग दो करोड़ टन अन्न आयात कर लिया जायेगा।
    हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि आज़ादी के सत्तर साल के बाद भी बिना अच्छे मानसून के हम भरपूर कृषि उपज लेने में समर्थ नहीं है. हमें यह भी नहीं भूलना चाहिये कि लगातार ख़राब मानसून की स्थिति में हमें पुनः गेहूं/मकई उपजाने वाले विदेशी ताकतों के आगे कटोरा लेकर खड़ा रहना पड़ सकता है.
    कमोवेश यही स्थिति खाद्य तेल और दालों की भी बन रही है. इस सम्बन्ध में कोई दीर्घकालिक नीति बनाने की आवश्यकता है.
    बताया जाता है कि हमारे देश में खजूर की सालाना खपत करीब तीस हज़ार टन की है जबकि इसकी उपज नहीं के बराबर है. सभी खजूर आयात किये जाते हैं. हमारे राजस्थान और बुन्देलखण्ड के सूखे इलाके खजूर की खेती के उपयुक्त हैं. हमारा कृषि मंत्रलय भी किसी अज्ञात कारणवश खजूर की खेती पर उचित ध्यान नहीं देता।यहाँ यह बताना आवश्यक है कि खजूर की खेती और खजूर के प्रशंस्करण(Packaging after processing) में रोजगार और व्यापर की अपार संभावनायें हैं.             
4. अभी तक किसान यह नहीं समझ पाया है कि गेहूं और धान सहित MSP वाले खाद्यान्नों की खरीद की जवाबदेही राज्य सरकार की है या केन्द्र सरकार की? FCI के दलाल काफी प्रभावशाली हो गये हैं. दलाल ऐसी परिस्थिति पैदा कर दते हैं कि अन्ततः किसान दलालों के हाथों काफी कम दाम पर अपनी कृषि उपज बेचने को मजबूर हो जाते हैं. FCI को दलालों और किसानों में अन्तर समझना चाहिये।
5. उत्कृष्ट कृषि वाले खेतों का भ्रमण:-- खेती करते या उत्कृष्ट फसलों को देखने से भी किसानों का ज्ञान बढ़ता है. आये दिन ख़बरें आती रहतीं हैं कि शहरों के कई करोड़पति/अरबपति किसानों ने अपने खेतों में करोड़ों रुपये की फसल उपजायी है. ऐसे जिन शहरी किसानों  ने एक एकड़ में जमीन पर एक वर्ष में एक करोड़ रु से ज्यादा की फसल उपजायी है उन्हें भी एक पद्म पुरष्कार मिलना चाहिये। क्योंकि इनलोगों ने दुनिया भर में भारत का नाम रौशन किया है। यह सर्वविदित है कि दुनिया में कहीं भी एक एकड़ खेत में एक करोड़ रूपया की फसल नहीं उपजती। मैंने कई किसानों से बात की है सबों ने यह माना है कि एक एकड़ में एक साल में सब्जी, मछली और फल आदि भी खर्च काटकर पाँच लाख रुपये से ज्यादा की नहीं उपजायी जा सकती। फिरभी अगर सरकार को लगता है कि करोड़ों रुपये की खेती एक साल में एक एकड़ में की जा सकती है तो प्रगतिशील किसानों को वैसे खेतों का भ्रमण कराना चाहिये ताकि प्रगतिशील किसानों का ज्ञान वर्धन हो सके।
     संचार माध्यमों के बढ़ते उपयोग से किसानों में सरकार के प्रति आशा जग रही है. अभी खेत, खलिहान या बगीचे में कृषि-उपज के मूल्य और शहरों के दुकानों पर उन कृषि-उपज के मूल्य में बहुत ज्यादा अन्तर देखा जा सकता है. अनाजों के मूल्य में यह अन्तर लगभग दुगुना और फल/सब्जी के मूल्य में तीन गुना से भी ज्यादा अन्तर रहता है. यह अन्तर आपूर्ति की कड़ी में मजबूत गाठों के कारण होता है. यह भी कहा जाता है कि जितनी कमाई किसान अपने खेतों में लगभग चार महीना तक अपनी पूँजी लगाकर और अपना पसीना बहाकर नहीं कमाते उससे ज्यादा कृषि-उपज के व्यापारी लगभग तीन दिनों में ही कमा लेते हैं. जब तक इस स्थिति में सुधार नहीं होगा तबतक किसानों की स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं होगा।          
नोट:- उक्त सभी तथ्य बहुत से किसानों और कृषि विज्ञानं के कुछ जानकारों से की गयी बातचीत पर संकलित किये गये हैं. सुझाओं और खट्टी-मीठी टिप्पणियों का स्वागत रहेगा। 
https://twitter.com/BishwaNathSingh    

Comments

  1. बहुत उम्दा और सार्थक लेख है किसानों की समस्याओें और उनके निदान पर। मैं भी कुछ जोड़ना चाहूंगा।
    1- देश मुश्किल से 7-8 प्रतिशत किसान ही फसल बेचने की स्थिति में हैं। फसल लगने से पकने के बीच ही उन किसानों को चिन्हित कर लिया जाए जो एमएसपी पर फसल बेचना चाहते​ हैं। ऐसे सरकार के पास पहले से अनुमान रहेगा कि उसे कितना अनाज खरीदना है। उसी के अनुसार किसानों से अनाज खरीदने और तत्काल खरीद का मुल्य किसान के खाते में ट्रांसफर करने का प्रबंध किया जा सकता है।
    2- अधिकांश किसान छोटे-छोटे काश्तकार हैं जिनके पास बेचने भर का अनाज नहीं पैदा कर पाते हैं। इन्हें कृषि से ही जुड़े किसी उद्यम जैसे पशुपालन, मुर्गी पालन, डेयरी,फूड प्रोसेसिंग आदि के लिए प्रेरित करना चाहिए। साथ ही नकदी फसलों जैसे सब्जी,फल आदि के लिए भी तैयार किया जा सकता है।
    3- छोटे किसानों को सस्ते लोन आदि पर कृषि उपकरण उपलब्ध कराये जिससे ये उसके सहारे औरों के खेतों में काम कर धनोपार्जन कर सके।
    4- किसानों को कृषि कार्य में दक्ष करने का सतत प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाना चाहिए।
    5- सस्ते बीज, खाद, बिजली, पानी उपलब्ध कराया जाये।
    6- कृषि लोन लेने पर उसका उपयोग कृषि में ही हो यह सुनिश्चित हो। इसके लिए बैंक, कृषि सामानों के विक्रेता और किसान का पूल बने। किसान को पैसा न देकर किसान जिस विक्रेता से बीज, खाद आदि लें उसके स्वीकृत लोन से पैसा विक्रेता के खाते में जाये।
    अभी तो इतना ही सोच पाया हूं। जैसे ही कुछ विचार और आयेंगे आपसे साझा करूंगा।

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