यदि रेल गाड़ी ऐसे चलती तो कितना अच्छा होता!

     बहुत दिनों से मन में इच्छा जगते रहती थी कि काश! रेल गाड़ी ऐसे चलती तो कितना अच्छा होता! इच्छायें तो मन में आती हैं; फिर यह सोचकर दब जाती हैं कि मेरे सोचने से क्या होगा। कई बार तो हटिया-पटना एक्सप्रेस ट्रेन में जब सुबह में जहानाबाद से काफी बड़ी संख्या में अनपेक्षित यात्री स्लीपर क्लास में चढ़ जाते हैं. पता चलता है कि अधिकांश यात्री मज़बूरी में और कुछ तो मनशोखी में ट्रेन चढ़ जाते हैं. आरक्षित यात्रियों को अब अपना बर्थ का अधिकार छोड़ना पड़ता है. कुछ देर के बाद अनपेक्षित यात्री बर्थ पर बैठकर अपना उसपर अपना अधिकार भी ज़माने लगते हैं.
     यात्री प्रायः मध्यम या अधिक दूरी के यात्रा में व्यवधान नहीं चाहते हैं. इसी कारण आरक्षित यात्री दिन में लोकल यात्रियों का प्रतिरोध नहीं करते। जब यह ट्रेन आदतन छोटे स्टेशनों पर या बाहरी सिग्नल पर रुकते चलती है तब लोकल यात्रियों में रेल परिचालन से संबंधित खूब बहस होती है. कभी-कभी तो यह बहस काफी तार्किक और ज्ञानवर्धक होती है. उन्ही बहसों में से कुछ निम्न बिन्दु उल्लेखनीय लगते हैं--
(1). 13329 धनबाद-पटना गंगा-दामोदर एक्सप्रेस प्रतिदिन धनबाद से 23:10 बजे खुलकर 291 किमी की दूरी तय कर अगले दिन सुबह 05:15 बजे पटना पँहुचती है और पटना जंक्शन स्टेशन के एक प्लेटफॉर्म पर करीब साढ़े तीन घंटा रुकी रहती है. यही रेक बाद में दूसरी ट्रेन बनकर धनबाद तक जाती है. इसी तरह 18624 हटिया-राँची-पटना एक्सप्रेस प्रतिदिन राँची से 19:30 बजे खुलकर कर उसी रात  23:25 बजे गोमो पंहुचकर आधा घंटा तक रूकती है और अपने साथ 28624 एक्सप्रेस जो बरकाकाना से प्रतिदिन 16:15 बजे खुलकर 101 किमी की दूरी तय कर उसी रात गोमो 1845 बजे पँहुच कर वहाँ 250 मिनट रूकती है, की दो बोगियों को अपने साथ जोड़कर अगले दिन सुबह 06:30 बजे पटचती  है. यात्रियों का सुझाव था कि 28624 को गोमो जंक्शन पर 13329 एक्सप्रेस में जोड़कर चलाया जाता तो 18623/18624 हटिया-पटना एक्सप्रेस के यात्रा-परिचालन में 25 मिनट की कमी आ जाती।
(2) एक सज्जन लालू-भक्त लगते थे. उनका कहना था कि लालूजी ने अपने रेल-मन्त्री के प्रारम्भिक कार्यकाल में 24 डिब्बा के सुपर फास्ट एक्सप्रेस ट्रेन चलाने का निर्णय लिया था और उसी अनुरूप उसके रुकने वाले स्टेशन के प्लेटफार्म की लम्बाई भी बढ़वाई थी और उस तरह के ट्रेन में 6 सामान्य श्रेणी के डिब्बों को लगवाने का भी निर्णय लिया था. लेकिन दुर्भाग्यवश यह निर्णय अमल में नहीं लाया जा सका और प्लेटफार्म की लम्बाई बढ़ाने का खर्चा बेकार चला गया.
(3) एक सज्जन तो ऐसे भी मिले जो सामान्यतया वातानुकूलित डिब्बों में ही चलते थे, लेकिन इस बार उन्हें किसी आकस्मिकता के कारण मजबूरीवश स्लीपर क्लास में यात्रा करनी पड़ रही थी. उनका सुझाव था कि यदि ट्रेन के समय सारिणी में ट्रेन के आगमन और प्रस्थान का समय Flexible रहता यानि यात्री ट्रेन अपने उद्गम स्टेशन से तो नियत समय पर खुलती लेकिन आगे के स्टेशनों पर उनके आगमन और प्रस्थान 15 मिनट को सम्भावित रखा जाता तो निश्चित रूप से ट्रेन अपने गन्तव्य स्टेशन पर समय से पँहुचती। इस विधि से कभी-कभी तो लम्बी दूरी की ट्रेन अपने गन्तव्य स्टेशन पर समय से पंद्रह से पच्चीस मिनट पहले पँहुच जाती। इससे रेलवे को काफी ऊर्जा की बचत होती और रेलवे के परिचालन खर्च में भी कमी आती.
5. रोल-इन-रोल-आउट सेवा:- इस तरह की सेवा बहुत दिनों से एक मालगाड़ी तीस-चालीस माल लदे ट्रकों को एक जगह से दूसरे जगह तक पँहुचाती है. ट्रक वालों को भी समय और कुछ पैसे बचते हैं और देश का बहुमूल्य डीजल तदनुरूप विदेशी मुद्रा। अब जरुरत है इस सेवा को देश भर में विस्तार करने की. हमारे देश में लगभग दो सौ लोडिंग-अनलोडिंग पॉइन्ट तक बनाये जाने की क्षमता है. अगर प्रति लोडिंग पॉइन्ट से दो ट्रक लदे मालगाड़ी भी चले तो काफी बहुमूल्य डीजल की बचत हो सकती है.
Image of a loaded trucks laden Roll in- Roll out goods train. Courtsy with a friend
भारतीय रेल हमारे देश की जीवन-रेखा है. भारतीय रेल सिर्फ लोगों और सामानों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाती है अपितु यह हमारे देश के लिये बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भी बचाती है. कहा जाता है कि प्रति टन सामान ढोने में सड़क मार्ग की अपेक्षा रेल मार्ग में मात्र छठा भाग ही ऊर्जा की खपत होती है. बहुमूल्य डीजल के अलावे रेल बिजली से भी चलती है. इस जीवन-रेखा को मजबूत बनाना सरकार के साथ-साथ हम सब की जवाबदेही है.

https://twitter.com/BishwaNathSingh
       


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