नेताजी की एक अद्भुत जन-सभा

    वर्ष 1981 की बात है. पूर्वी चम्पारण(बिहार) के एक गाँव के सरकारी विद्यालय के मैदान में सन्ध्या चार बजे से  बिहार प्रतिपक्ष के नेता स्व. कर्पूरी ठाकुर की एक जन-सभा आयोजित थी. ठाकुरजी समय से करीब दस मिनट पूर्व ही अपने निजी सहायक और सरकारी अमला के साथ लाल-बत्ती कार पर सवार होकर  सभा-स्थल पर पहुँच गये थे. उस समय तक न तो सभा-स्थल पर कोई ग्रामीण आया था और न ही मंच ही बनाया गया था. विद्यालय के सभी कमरों में ताला भी लगा हुआ था. जन-सभा के आयोजनकर्ताओं का भी अनुपस्थित रहना रहस्य का विषय बना रहा.
    ठाकुरजी की पार्टी 1977 के जय प्रकाश आन्दोलन की लहर में चुनाव जीत गयी थी और ठाकुर जी बिहार के मुख्य मन्त्री बने थे. वे 1980 के इन्दिराजी की लहर में स्वम् तो विधायक बन गये, लेकिन उनकी पार्टी चुनाव हार गयी थी. भूत पूर्व मुख्य मन्त्री, लोकप्रियता और वरीयता के नाते उन्हें नेता प्रतिपक्ष चुन लिया गया था. नेता प्रतिपक्ष को एक मन्त्री का दर्जा प्राप्त होता है. उस नाते उन्हें क्षेत्र में भी एक मन्त्री की सुविधा प्राप्त थी.
    सभा-स्थल पर किसी ग्रामीण का नहीं आना उनके साथ आये कर्मचारियों को आश्चर्य चकित कर रहा था, लेकिन ठाकुरजी शान्त भाव से अपनी सरकारी VIP कार में ही बैठे रहे. जब करीब आधा घंटा इंतजार करने पर भी कोई ग्रामीण नहीं आया तो ठाकुरजी अपने एक सहायक को उसी गाँव के एक आ योजनकर्ता  के पास ग्रामीणों को बुला लाने हेतु भेजा। सभा-स्थल से करीब दो सौ गज अन्दर गाँव में उस आयोजन-कर्ता  का घर था. उस घर के सामने की जमीन खाली थी. वहाँ पर करीब पाँच सौ ग्रामीण बैठे थे और उनमे गजब का अनुशासन बना हुआ था. वहाँ जुटे लगभग आधे ग्रामीण आस-पास के गाओं से थे.
     सहायक ने ठाकुरजी का सन्देश सुनाया और आयोजनकर्ता को ग्रामीणों को लेकर सभा-स्थल पर चलने का अनुरोध किया। आयोजनकर्ता ने ग्रामीणों को सम्बोधित करते हुए कहा कि इसी गाँव में आपात काल के दौरान कर्पूरी ठाकुरजी अपनी फरारी की अवधि में करीब एक माह तक छिपे रहे थे. शायद ही कोई घर इस  गाँव में होगा, जिसमें वे खाना खाकर रात नहीं बितायी होगी और आज उन्हें सत्ता की छोटी सुविधा भी इस  गाँव के अन्दर नहीं आने दे रही है. उन्होंने इस समय गाँव के लोगों को आश्वासन दिया था कि सत्ता में आने पर इस  गाँव के लोगों पर चल रहे झूठे मुक़दमे वापस कर लिये जायेंगे और इस गाँव की भलाई के लिये कुछ परियोजनायें भी चलायी जायेंगी।
     कर्पूरी ठाकुर आपात काल के बाद हुए चुनाव जीत कर जब बिहार के मुख्य मन्त्री बन गये तो इस गाँव का एक पाँच सदस्यीय प्रतिनिधि मण्डल, जिसमें आयोजनकर्ता भी शामिल थे उनके पटना स्थित कार्यालय और आवास पर उनसे मिलकर उनके द्वारा दिये गये आश्वासनों को पूरा कराने के लिये गया. करीब तीन दिनों के अथक प्रयास के बाद भी उस प्रतिनिधि मण्डल  की मुलाकात  मुख्य मन्त्री कर्पूरी ठाकुर से नहीं सकी. अब पटना में आगे रुकने के लिये आवश्यक पैसा भी इनलोगों के पास नहीं बचा था. थक हार कर वह प्रतिनिधि मण्डल अपने गाँव वापस आ गया. इन्ही सब घटनाओं को याद दिलाने के लिये ठाकुरजी को इस  गाँव में जन-सभा के बहाने बुलाया गया है. आयोजनकर्ता ने उपस्थित ग्रामीणों से पूछा कि ठाकुरजी को यहाँ आना चाहिये या हम ग्रामीणों को विद्यालय पर उनके पास जाना चाहिये। ग्रामीणों ने एक स्वर में ठाकुरजी को यहीं बुलाने की माँग की.
     सहायक ने स्थिति को अच्छी तरह समझ कर चुप-चाप यहाँ से चलकर वापस ठाकुरजी के पास जाकर उन्हें स्थिति से अवगत करा दिया और सुझाव दिया कि गाँव के अन्दर सुरक्षा कारणों से उनका जाना उचित नहीं होगा। ठाकुरजी के आँखों में आँसू आ गये और वे करीब दस मिनट तक  चुपचाप शान्ति से उदास भाव से अपनी गाड़ी में ही बैठे रहे. उन्होंने जोर से कहा कि सरकारी व्यवस्था मुख्य मन्त्री को अपने लोगों से मिलने में बाधक बनी रहती है और बिना जन-सभा किये ही वापस लौट गये. इस तरह मात्र दो सौ गज पर लगभग पाँच सौ ग्रामीणों की सभा तो हुई, लेकिन जन-सभा का मुख्य अतिथि वहाँ पँहुच नहीं सका और यह अद्भुत जन-सभा के नाम से इलाके में मशहूर हो कर रह गयी.
    स्थानीय लोग यह कहते रहे कि नेताओं की कथनी और करनी में अन्तर नहीं होनी चाहिये। अगर नेता आश्वासन इसलिये देते हैं कि फ़िलहाल काम चला लिया जाय ; समय आने पर देखा जायेगा तो यह उनकी जगहंसाई का कारण भी बन सकता है. उस गाँव में जुटे वे ही लोग थे, जिन्होंने 1977 में ठाकुरजी की पार्टी को वोट दिया था. इतनी जल्दी अब उनलोगों का उस पार्टी से मोह भंग हो चुका था. मोह भंग होने के कुछ तो कारण रहे होंगे। बाद में कर्पूरीजी भी अपने लोगों को यह उपदेश बराबर देते थे कि सिर्फ सरकारी कार्यों का करना ही काफी नहीं है बल्कि जनता से सम्वाद भी बहुत जरुरी है. और जनता के उस वर्ग से सम्पर्क ज्यादा महत्वपूर्ण है जिन्होंने आपको अपना बहुमूल्य वोट देकर जिताया है; आश्वासन भी उतना ही देना चाहिये जितनों को पूरा किया जा सके.  

Note:- यह घटना जन-श्रुतियों पर आधारित है. जिन लोगों ने मुझे यह घटना सुनायी, उनलोगों पर मैं पूर्ण विश्वास करता हूँ कि यह घटना सही है. जिनलोगों को मुझपर विश्वास नहीं है, वे लोग कृपया इसे बकवास मानकर भुला दें क्योंकि मेरे पास इसे प्रमाणित करने लायक सबूत नहीं है. यह भी निर्विवाद सत्य है कि स्व. कर्पूरी ठाकुरजी बिहार के एक महान नेता थे, लेकिन जन आकाँक्षाओं ने उन्हें राजनीति से बाहर कर दिया।

https://Twitter.com/BishwaNathSingh          

Comments

  1. yes this is true.. there should not be any mismatch between said and done..dualism is bad, whoever he or she may be

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