अधिक दिनों तक कच्चे तेल की कीमत 50 डॉलर से कम रहना हमारी अर्थ-व्यवाथा के अच्छा नहीं है।

     हम बहुत वर्षों से यह सुनते और देखते आ रहे हैं कि जब-जब पेट्रोलियम पदार्थों का मूल्य बढ़ता है तब-तब प्रायः सभी वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य बढ़ जाते हैं। अब हमें इसके उलटे असर के लिये भी तैयार रहना चाहिये। Shale Oil उत्पादन के खर्चे में कमी आने सौर ऊर्जा के दाम घटने से भी कच्चे तेल सहित ऊर्जा के स्रोतों से प्राप्त होने वाले माध्यम जैसे कोयला, पवन टरबाइन आदि के मूल्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर घट रहे हैं. इनसे दुनिया भर में उत्खनन(Mining) और परिवहन सस्ता हो रहे हैं। ऐसे में लोहा, कृषि उपज सहित बहुत से उत्पादों का सस्ता होना लाजिमी है। इन सामानों का उपभोग बढ़ने के परिणाम स्वरुप हमारा आयात बढ़ जायेगा। यदि इसी अनुपात में हमारा निर्यात नहीं बढ़ा तो हमारे रुपया की कीमत घटते जायेगी। वर्ष 2008 के दिसम्बर माह में अमेरिका की मंदी से घबराहट में अल्प काल के लिये WTI कच्चे तेल की कीमत $47 प्रति बैरल तक आ गयी थी. लेकिन इस बार कच्चे तेल की कीमत धीरे-धीरे गिर रही है. ऐसा लगता है कि इस बार की गिरावट दीर्घकालिक होगी।

आपूर्ति पक्ष(Supply side):- 

सकारात्मक रुख:- (1) अमरीकी, यूरोपीय और चीनी वैज्ञानिक तथा इंजीनियर कच्चे तेल के उत्खनन का खर्च घटाने हेतु निरन्तर नयी-नयी तकनीकें खोज कर ला रहे हैं। इन तकनीकों से कच्चे तेल का उत्खनन खर्च निरन्तर कम हो रहा है। लाभ कमाने की होड़ में उत्पादन भी बढ़ रहा है। इस कारण से भी कच्चे तेल की आपूर्ति बढ़ रही है। जहाँ एक दशक पूर्व संयुक्त राज्य अमेरिका अपनी जरुरत का मात्र आधे से कम ही कच्चे तेल का उत्पादन करता था वही अमेरिका आज कच्चे तेल को संशोधित कर डीजल, पेट्रोल और हवाई ईंधन आदि निर्यात कर रहा है. अभी हमारा देश कच्चे तेल की आपूर्ति(बढ़ा या घटाकर) को कच्चे तेल के मूल्य को प्रभावित करने की स्थिति में नहीं है.
(2) ईरान पर लगे आर्थिक प्रतिबन्ध हटाये जा रहे हैं. इससे ईरान से आने वाले कच्चे तेल की मात्रा निश्चित रूप से बढ़ जायेगी। यदि ईरान तेल उत्खनन में विदेशी कम्पनियों की भागीदारी बढ़ाता है तो ज्यादा से ज्यादा ईरानी तेल विश्व बाजार में उपलब्ध होगा।
(3) देर-सबेर रूस पर से भी आर्थिक प्रतिबन्ध हटाये जायेंगे। अगर ऐसा हुआ तो कच्चे तेल की आपूर्ति बढ़ जायेगी। यह भी देखने लायक बात है की सोवियत संघ के विघटन के कुछ वर्षों बाद से ही रूस में कच्चे तेल का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है.
(4) भारत, चीन अपना रणनीतिक तेल भण्डार बहुत बड़ा करते जा रहे हैं. प्रायः सभी देश अपना व्यावसायिक भण्डारण भी. इन दोनों देशों में इस तेल भण्डार को कम कर उसके विक्री से प्राप्त पैसों से आधारभूत संरचना कड़ी करने की मांग उठ रही है. ऐसा होने से विश्व बाजार में तेल की उपलब्धता बढ़ जाएगी।
(5) कनाडा में भारी कच्चा तेल का उत्पादन बढ़ रहा है, लेकिन इस तेल को विश्व बाजार या अमरीकी तेल शोधन कारखानों तक पंहुचाने हेतु कोई अच्छी व्यवस्था नहीं है. तेल पंहुचाने हेतु आधारभूत संरचना के निर्माण और विकास से कनाडा के भारी कच्चे तेल की आपूर्ति विश्व बाजार में बढ़ जायेगी।
(6) मिस्त्र अपने सुएज नहर की क्षमता का विस्तार आठ अरब डॉलर की लागत से कर रहा है और इसे एक साल के पूरा कर लेने के लिये संकल्पबद्ध है. इसी तरह चालीस अरब डॉलर की लागत से निकारागुआ में निकारागुआ झील होते एक बड़ा नहर का निर्माण कर रहा है. इस नहर की क्षमता पनामा नहर से कई गुना ज्यादा होगी। पनामा नहर का आधुनिकीकरण किया जा रहा है. इन तीनों नों नहरों के निर्माण और आधुनिकीकरण पूरा हो जाने से अमरीका का पेट्रोलियम उत्पाद और कनाडा/वेनेजुएला का कच्चा तेल आसानी से दुनिया के हर कोने में सस्ते में उपलब्ध होने लगेगा। इससे भी तेल की आपूर्ति बढ़ जायेगी।      
नकारात्मक रुख:-  (1) कच्चे तेल उत्पादक देशों में अल-कायदा, अल-शबाब, दयेश(ISIS) आदि खतरनाक अलगाववादी संगठन का विस्तार हो रहा है. इनके विरुद्ध बड़े देशों के सैन्य कार्यवाई के बावजूद इनके वर्चस्व में लगातार वृद्धि हो रही है और इनके प्रभाव वाले क्षेत्र में तेल उत्पादक कम्पनियों को इन्हे रंगदारी देना पड़ रहा है. इन संगठनों की अति हिंसक गतिविधियाँ तेल के उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव डाल कर तेल की आपूर्ति कम कर सकती है.
(2) पुरानी तकनीक वाली कच्चे तेल की उत्पादक कम्पनियाँ प्रतिस्प्रधा की दौड़ में  उत्पादन लागत के मोर्चे पर पिछड़ते जायेंगी और इनके बंद होने से तेल की आपूर्ति में अस्थाई कमी आते रहेगी। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, जिसे रोका नहीं जा सकता है. थोड़े समय के लिये इस प्रक्रिया से भी तेल आपूर्ति में कमी आयेगी और कच्चे तेल के दाम बढ़ जायेंगे।
(3) युद्ध, भीषण प्राकृतिक आपदा और तेल उत्पादक/शोधक इकाइयों में बड़ी दुर्घटना भी कच्चे तेल की आपूर्ति कम कर सकता है.        

खपत पक्ष(Demand side):-

(1) बैटरी तकनीक में निरन्तर सुधार हो रहा है। जल्दी ही बैटरी तकनीकि में Breakthrough होने का दावा Ambri(खर्च के मोर्चे पर) और  Sakti3, StoreDot, 24M, Fuji आदि कम्पनियों  द्वारा(Wh/kg के मोर्चे पर)  किया जा रहा है। टेस्ला, पैनासोनिक और BYD इन दोनों मोर्चों पर सुधार कर रहा है. अब इस क्षेत्र में कोई भी Breakthrough क्रान्ति ला सकता है. धीरे-धीरे अब बैटरी और हाइड्रोजन को भविष्य का पेट्रोलियम उत्पाद समझा जाने लगा है.
     बैटरी चालित गाड़ियों की निर्माता कम्पनियाँ जैसे Tesla, BYD, Nissan आदि की बिक्री की वृद्धि दर चौकाने वाली लग रही है। वायुयान और जलयान का परिक्षण भी सफलता पूर्वक किया गया है। जापान, जर्मनी, दक्षिण कोरिया और ब्रिटेन में स्मार्ट रोड बना कर वायरलेस चार्जिंग तकनीकि से बैटरी चालित गाड़ियों का परिक्षण चल  रहा है. इन परीक्षणों के सफल होने से पेट्रोलियम उत्पादों की खपत में कमी आयेगी।
    इनसे ऐसा लगता है कि जल्दी ही परिवहन की इन प्रणालियों का बड़े पैमाने पर उपयोग होने वाला है। ऐसा होने से पेट्रोलियम उत्पादों की खपत कम होगी।
(2) हाइड्रोजन के उत्पादन लागत और हाइड्रोजन फ्यूल सेल तकनीकि में लगातार सुधार हो रहा है और इनके कीमत घट रहे हैं. टोयोटा और प्लग पावर आदि बहुत सी कम्पनियाँ इस क्षेत्र में सक्रिय हैं. इस तकनीकि का सफल परिक्षण जर्मनी द्वारा पनडुब्बी को लगातार 18 दिनों तक समुद्र के पानी में चलाकर किया गया है. यदि इसके कीमतों में अपेक्षित सुधार हुआ तो यह अक्षय ऊर्जा का बड़ा स्रोत बन सकता है.   
(3) दुनिया भर में रेल सेवाओं का विस्तार हो रहा है और साथ ही साथ रेल सेवाओं का विद्युतीकरण भी हो रहा है. मेट्रो सेवाओं का भी विस्तार हो रहा है. ब्रिटेन और जापान में बैटरी चालित रेल गाड़ियों का परिक्षण भी चल रहा है. इन परीक्षणों की सफलता भी पेट्रोलियम उत्पादों की खपत कम करेगा।
(4) शहरों में बिजली आपूर्ति में सुधार होने और दूर-दराज के इलाकों तथा छोट-छोटे टापुओं पर सोलर/पवन पावर के आने से डीजल जेनरेटरों का उपयोग धीरे-धीरे कम हो रहा है. इन सब से भी पेट्रोलियम उत्पादों की खपत कम हो रही है.
(5) दिन प्रति दिन हल्के किन्तु मजबूत पदार्थ जैसे कार्बन फाइबर आदि का विकास और उत्पादन हो रहा है, जिससे परिवहन के सभी साधन हल्के होते जा रहे हैं. ऊर्जा-दक्ष इंजन का भी निरन्तर विकास हो रहा है. इन दोनों कारणों से भी पेट्रोलियम उत्पादों की खपत कम हो रही है.
     ऐसे में पेट्रोलियम पदार्थों की खपत कम होने की सम्भावना है जो कच्चे तेल के मूल्य पर दबाव डाल कर उसे नीचे की ओर ही धकेलेगा।
     अब उक्त कारणों से विश्व बाजार में कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों की उपलब्धता मांग के अनुरूप ज्यादा होने लगी है. ऐसा होने से वर्ष 2014 के जून माह से ही कच्चे तेल के दाम में कमी आने लगी है. अधिकांश पश्चिमी देशों में कच्चे तेल का उत्खनन और शोधन पूंजीवाद पर आधारित है. यानि इनके उत्पाद एक सीमा से ज्यादा सस्ते नहीं हो सकते, लेकिन यदि कच्चे तेल की कीमत $50/बैरल से कम अधिक दिनों तक बना रहा तो इसका नकारात्मक प्रभाव निम्न प्रकार से हमारी अर्थ-व्यवस्था पर पड़ सकता है----
(1) OPEC देशों में हमारे लगभग पैंसठ लाख कामगार कर रहे हैं और लगभग इतनी ही संख्या में इन कामगारों के चलते हमारे देश के अंदर लोगों को परोक्ष रूप से काम मिला हुआ है. जब कच्चे तेल के दाम कम रहेंगे तो  OPEC देशों की आय में निश्चित रूप से कमी आयेगी। ऐसी स्थिति में हमारे कामगार लौट सकते हैं. उनके देश लौटने से हमारे देश में बेरोजगारी बढ़ जायेगी उन कामगारों द्वारा भेजे गये पैसों(Repatriation Money) से हमारे देश को वंचित होना पड़ेगा। लेकिन यह भी सत्य है कि खाड़ी के इन देशों के पास अकूत धन, सोना और विदेशी मुद्रा भण्डार के रूप में जमा है. OPEC के सदस्य यथाशक्ति हमारे कामगारों को अपनी जरुरत हेतु रखने का प्रयास करेंगे। लेकिन लगता नहीं है कि वे देश कामयाब हो पायेंगे।
(2) कच्चे तेल के दाम में कमी से OPEC देशों को होने वाला निर्यात में कमी आयेगी।
(3) हमारे पडोसी देशों में डीजल और पेट्रोल की कीमत कम है. इस कारण स्मगलिंग और कालाबाज़ारी बढ़ जायेगी।
(4) कच्चे तेल की कीमत में आई कमी से हमारे देश में पेट्रोलियम उत्पादों की खपत में वृद्धि हो सकती है, जिससे पुनः हमारा आयात बढ़ जायेगा और प्रदुषण के विरुद्ध लड़ने की हमारी प्रतिबद्धता कमजोर हो जायेगी। निकट भविष्य में ही अन्तर्राष्ट्रीय विरादरी कार्बन उत्सर्जन करने वाले उत्पादों के अधिक उपयोग हेतु निश्चित रूप हमपर कार्बन टैक्स लगावेगा।
(5) कच्चे तेल के सस्ता होने से इसके आयात में भारी वृद्धि होगी। अब हमें अपनी सीमाओं से ज्यादा Oil Routes की सुरक्षा पर ध्यान देना होगा। इससे हमारा रक्षा बजट में भी बेतहाशा वृद्धि होगी। 
    निर्यात की तुलना में आयात अधिक होने, स्मगलिंग और बेरोजगारी में वृद्धि से हमारी अर्थ-व्यवस्था संकुचित होगी और हमारा रूपया भी डॉलर के मुकाबले कमजोर होगा। तेल के दाम कम होने से हमारी राज्य सरकारों के राजस्व में भी कमी आयेगी, जिससे विकास कार्य प्रभावित हो सकते हैं. कार्बन टैक्स लगने से भी हमारी अर्थ-व्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ेगा। इन सब कारकों का Cascading Effects भी अवश्यम्भावी है. इस तरह कच्चे तेल के दाम $50/बैरल से अधिक दिनों तक कम रहना हमारी अर्थ-व्यवस्था के लिये अच्छा नहीं है.
     यद्यपि कि भारत जैसे आयात पर निर्भर रहने वाले देश के लिये कच्चे तेल की कीमत में गिरावट एक शुभ समाचार है, लेकिन उपरोक्त बातें हमें डराती भी हैं. हमें इन कारकों को समझते हुए इसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार करना चाहिये। हमारे लिये या एक सुनहरा अवसर भी है. सोलर, पवन ऊर्जा को बढ़ावा देने और इन दोनों अस्थिर ऊर्जा को स्थायित्व प्रदान करने के लिये हमें क्रमशः बैटरी और हाइड्रोजन के उत्पादन पर भी ध्यान देना चाहिये। हमें अपनी रेल प्रणाली को मजबूत करते हुए इसके सामानांतर सड़क मार्ग के विकास के बजाय रेल स्टेशनों को जोड़ने वाली सड़क प्रणाली के विकास पर ध्यान देना चाहिये। आइये हमसब मिलकर इस अवसर को देश के विकास में लगावें।        
नोट:- बहुतों को यह कपोलकल्पित बात लग सकती है। समय ही बतावेगा कि इन अनुमानों में कितना दम है।
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