पानीपत की तीसरी लड़ाई; नौटंकी में बने एक गुरूजी की जुबानी:

पानीपत की तीसरी लड़ाई पटना के गाँधी मैदान में हुई थी; नौटंकी में बने एक गुरूजी  की जुबानी:- "आज पटना के गाँधी मैदान में एक बड़ी लड़ाई होने वाली थी. मैं उस समय नन्हा बालक था. मैं अपने दादाजी के बताये अनुसार सूरज उगते ही नहा-धोकर तैयार हो गया था. माँ ने भी रास्ते के लिये कलेवा बना कर दे दिया था. मैं सूरज उगने के कुछ बाद अपने दादाजी के साथ अपने गाँव के घर से पटना के लिये पैदल ही चल दिया। दोपहर बाद हमलोग पटना के गाँधी मैदान में पँहुच गये.
     काफी पहले ही नगाड़ा और ढोलक बजना शुरू हो गया था. मुझे तो नागड़ा की आवाज से ही डर लगने लगा. दादाजी मुझे हिम्मत बढ़ाते रहे और बताते रहे की युद्ध में नगाड़ा बजना जरुरी है; नागड़ा की आवाज योद्धाओं में जोश उभरती है और योद्धा के मन से भय भी मिटता है. हमलोग गाँधी मैदान के पश्चिमी किनारे पर खड़े थे. जब बिगुल बजना शुरू हुआ तब दादाजी ने मुझे अपने कंधे पर बैठा लिया।
     कुछ ही देर के बाद गाँधी मैदान के दक्षिणी भाग से घोडा पर सवार हो कर और लाल पताका हाथ में लिये सैनिक धीरे-धीरे आने लगे. दादाजी ने बताया कि वे सब बाबर के सैनिक हैं.  फिर उत्तर तरफ से भी सैनिक हरा झण्डा अपने हाथ में लिये घोडा पर सवार होकर आने लगे. अब दादाजी ने बताया कि ये सब इब्राहिम लोदी के सैनिक हैं. बाबर के सैनिक असली घी खाकर बहुत तगड़ा लग रहे थे लेकिन इब्राहिम लोदी के सैनिक भी कम न थे.
     कुछ देर सैनिकों के सरदार घोडा दौड़ा कर अपने-अपने सैनिकों के आगे खड़े हो गये. पहले तो हरा पताका वाला सरदार लाल पताका वाले सरदार को मैदान छोड़ कर भाग जाने को बोला लेकिन लाल पताका वाला सरदार भी जोशीला और हिम्मत वाला लग रहा था. उसने युद्ध करने हेतु हरे पताका वाले सरदार को लड़कारा और अपने सैनिकों को आगे बढ़ कर आक्रमण करने का आदेश दिया। आदेश पाते ही दोनों सेनाओं के सैनिक आगे बढे और इस तरह युद्ध शुरू हो गया.
     अब नगाड़ा और ढोलक की आवाज और भी तेज हो गयी. मुझे तो डर लगने लगा और मैंने रोते हुए अपने दादाजी के कन्धे पर ही शुशु कर दिया। मेरे दादाजी गुस्सा गये और मेरे पीठ पर एक थप्पड़ जड़ दिये और मुझे नीचे उतार दिये। वे झल्लाते हुए अपने गमछा से  मेरा शुशु पोछने लगे. उन्होंने मुझे चेताया कि अब आगे फिर कभी युद्ध होगा तो वे मुझे नहीं लावेंगे। मुझे भी लगा कि मुझसे गलती हो गयी थी. लेकिन मैं भी क्या करता। डर जाने से न चाह कर भी शुशु निकल गया था.
     दादाजी मुझे पुनः अपने कन्धे पर बैठा लिये। कुछ देर के बाद हरा पताका वाले सैनिकों का पैर उखड़ने लगा और वे लोग उत्तर दिशा की ओर यानि अदालत की तरफ भागने लगे. पीछे से लाल पताका वाले सैनिक भी उनका पीछा करने लगे. मेरे दादाजी भी पीछे-पीछे चल पड़े. गंगा के किनारे पँहुच कर हमने(दादाजी, मैं और बहुत से लोग) देखा कि गंगा नदी में एक बहुत बड़ा गाछ था जिस पर इब्राहिम लोदी के सैनिक डर से अपनी जान बचाने के लिये चढ़ गये थे. गंगा नदी में बाबर के सैनिक तलवार और भाला भांज रहे थे. अब ऊपर गाछ पर चढ़े सैनिकों पर बाबर के सैनिक भाला घोंपने लगे. भाला घोंपे जाने से इब्राहिम लोदी के सैनिक पानी में गिरने लगे. पानी में सैनिकों के गिरने से पत-पत की आवाज आने लगी. पानी में पत-पत की आवाज आने से इस युद्ध का नाम "पानीपत की लड़ाई" पड़ा. चूँकि यहाँ पर ऐसी ही दो और लड़ाइयां पहले लड़ी जा चुकी हैं अतः इस लड़ाई को "पानीपत की तीसरी लड़ाई" से जाना गया।
      युद्ध समाप्ति के बाद दादाजी मुझे वापस अपने घर लाये और बहुत सालों तक मुझे दुनिया भर के युद्धों की कहानियां सुनाते रहे." नौटंकी में बने गुरूजी ने अन्त में दर्शकों को घूर-घूर कर देखा और बोले कि यहाँ बच्चे बहुत कम हैं अतः बच्चों के पिता और दादा लोगों से अनुरोध है कि इस कहानी को अपने बच्चों को जरूर सुनावें; हो सकता है कि इस कहानी से जुड़े सवाल आगामी परीक्षा में आवे.
नोट:- मैंने भी इस कहानी को सुनी है. श्रुतिसम्वत होने के कारण और काफी समय बीत जाने के कारण मुझे लगता है कि इसमें कुछ तथ्य छूट गये हैं, लेकिन इतना विश्वास के साथ मैं कहता हूँ कि इसमें मैंने अपने तरफ से कुछ जोड़ा नहीं है. आजकल इतिहास की बड़ी चर्चा हो रही है. जब कुछ लोग हमारे महान योद्धा शिवाजी को अफ़ज़ल खान का हत्यारा बताते हैं तो मुझे बहुत दुःख होता है. मुझे लगा कि इस व्यंगात्मक कहानी को एक ब्लॉग का रूप दिया जाये. जिस प्रकार अठारहवीं शताब्दी में झूठी कहानियों के प्रचलन से ऊबकर सुविख्यात लेखक जोनाथन स्विफ्ट ने Gulliver's Travel लिखकर तत्कालीन कहानीकारों को चुनौती दी थी, उसी प्रकार इस व्यंगात्मक घटना के रचनाकार ने भी इतिहास के विद्यार्थियों को खुली चुनौती दी है कि कोई भी इस कहानी को प्रमाणों के आधार पर गलत साबित कर के दिखाये।
     इसके लिए कालेजों के उच्च शिक्षा में इतिहास के विद्यार्थियों को विज्ञानं का काल निर्धारण पद्धति जरूर पढ़ाया जाना चाहिये। Determination of Age by Radiocarbon Dating Process कहा जाता है कि इतिहास का अधिकांश भाग विजेता के सापेक्ष ही लिखा गया है. विजेता के गुणों को बढाकर उसके अवगुणों को दबाया गया है. उसी तरह उसके विपक्षी के गुणों को दबाकर उसमे मनगढ़ंत अवगुणों को दिखाया गया है. पाठकों की खट्टी-मीठी टिप्पणियों का सदैव स्वागत रहेगा।
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