संयुक्त विपक्ष यानि MVM(मोदी विरोधी मोर्चा) के जीत के निहितार्थ

गुरुदासपुर(पंजाब) से लोक सभा उपचुनाव में भाजपा की हार का सिलसिला उत्तर प्रदेश के उपचुनाव तक पंहुच गया है. फुलपुर और गोरखपुर के उपचुनावों के परिणाम आ गये हैं. इन दोनों उपचुनावों में भाजपा के प्रत्याशियों की अनअपेक्षित करारी हार हुई है. इन दोनों लोक सभा क्षेत्र में सपा के प्रत्याशियों की जीत से ज्यादा भाजपा की हार की चर्चा हो रही है. इन दोनों क्षेत्रों की विशेषता सर्वविदित है. जहाँ फुलपुर से प्रथम प्रधान मंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू जीतते रहे हैं वहीँ गोरखपुर से यूपी के वर्तमान मुख्य मंत्री जीतते रहे है. गोरखपुर उनका कर्मभूमि भी है.
वर्ष 1995 से धुर विरोधी रहे सपा से इस चुनाव में बसपा ने हाथ मिलाया है. सभी जानते हैं कि जब अचानक दो धुर विपक्षी अपने गिले-शिकवे भुलाकर मिले तो उस मिलन में किसी तीसरे शक्तिशाली शक्ति का हाथ रहता है. लेकिन अभी तक इस तीसरे शक्तिशाली शक्ति का पता लोगों को नहीं चल सका है. यह भी सम्भव है कि इन दोनों पार्टियों में सत्तासुख पाने की तीव्र इच्छा इन दोनों को मिलने का इस चुनाव में अवसर प्रदान किया हो.
चार्ट के गहन अवलोकन से स्पष्ट है कि कांग्रेस को 2014 की तुलना में दोनों क्षेत्रों में काफी कम मत मिले हैं. यह तथ्य संकेत देता है कि मोदी विरोधी मोर्चा यानि MVM बनाने हेतु कांग्रेस ने परोक्ष रूप से सपा-बसपा गठबन्धन को समर्थन दिया था.
फ़िलहाल तो MVM का प्रयोग सफल दिख रहा है. समय के साथ-साथ MVM में शामिल दलों की संख्या गुपचुप तरीके से बढ़ रही है. अब यह तो समय ही बतावेगा कि आगे आने वाले चुनावों पर इस MVM का कितना प्रभाव पड़ता है.

फुलपुर में 2014 में 50.2% जबकि गोरखपुर में 54.64% मत पड़े थे. इसी तरह इस बार 2018 में फुलपुर में 37.15% जबकि गोरखपुर में 47.45% मत पड़े हैं. इस चार्ट से यह भी स्पष्ट है कि जहाँ 2014 सपा, बसपा और कांग्रेस को मिलाकर कुल 4,17,153 मत फुलपुर में और 448475 मत गोरखपुर में मिले थे वहीं इस वर्ष इन्हे कुल 362475 मत फुलपुर में और 475071 मत गोरखपुर में मिले हैं, जो वर्ष 2014 में भाजपा को मिले मिले मतों से काफी कम है. उक्त चार्ट से यह भी स्पष्ट है कि अगर भाजपा के मतदाता किन्ही कारणों से अगर नहीं रूठते तो इन दोनों लोक सभा के उपचुनाव में भाजपा भारी मतों से विजयी होती।
इस चुनाव में भाजपा के मतदाताओं के रूठने या उदासीन हो जाने के कुछ कारण:-
1. प्रत्याशियों का कमजोर होना:- जहाँ एक ओर फुलपुर का प्रत्याशी क्षेत्र से बाहरी बताया गया वहीं गोरखपुर का प्रत्याशी वहाँ के मठ से बाहरी बताया गया. कुल मिलाकर दोनों प्रत्याशी ऊपर से थोपे गये थे.
2. प्रत्याशियों और पार्टी का अति-आत्मविश्वास:- दोनों क्षेत्रों के प्रत्याशी इतने अधिक आत्मविश्वास से परिपूर्ण थे कि उनलोगों ने स्थानीय कार्यकर्ताओं की घोर उपेक्षा की.
3. सपा के फुलपुर के प्रत्याशी रेलवे के बड़े ठेकेदार हैं. प्रयाग रेलवे स्टेशन सहित कई जगहों पर उनका या उनके नाम पर ठेका कार्य चल रहा है. भाजपा के समर्थक मतदाताओं को मोदीजी के "ना खाऊंगा और न खाने दूंगा" की अवधारणा धरातल पर फलीभूत होती हुई नहीं दिख रही थी. इस कारण भी भाजपा के कार्यकर्ताओं में पार्टी के बड़े नेताओं प्रति अंदरूनी क्षोभ था.
4. भाजपा के ऊपरी स्तर पर भी सुशासन में कमी दिख रही थी. कार्यकर्ताओं और भाजपा समर्थक मतदाताओं को बड़े नेताओं के करनी और कथनी में भी अन्तर दिख रहा थे. वे सब  "Even Caesar's wife must be above suspicion" की अवधारणा को भी अपनी पार्टी में पालन होते देखना चाहते थे.
उक्त कारणों से भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ता और समर्थक मतदाता रूठकर मतदान के उदासीन हो गये और मतदान के दिन अवसर मिलने पर भी अपना मतदान करना मुनासिब नहीं समझा। इस तरह MVM के प्रत्याशी इन दोनों क्षेत्रों से जीतने में सफल रहे. भाजपा के कार्यकर्ताओं और समर्थकों की मतदान के प्रति उदासीनता चिन्ता का कारण है. उम्मीद है भाजपा नेतृत्व इस ओर गम्भीरता पूर्वक ध्यान देगा ताकि निकट भविष्य में होने वाले कैराना लोक सभा उप चुनाव में स्थिति सुधर सके. लोकतंत्र को मजबूत बनाने हेतु MVM वालों से भी अपेक्षा है कि अपना मत-प्रतिशत बढ़ावेंगे।
2014 के लोक सभा आम चुनाव के बाद जितने भी चुनाव हुए हैं उनमे Anti Incumbency एक मजबूत कारक बनकर उभर रहा है. यँहा यह नहीं भूलना चाहिये कि इसी कारक के चलते गुजरात और गोवा में भाजपा लड़खड़ाते हुए जीती है. इस कारक को प्रभावहीन करने हेतु प्रशासन का चेहरा यानि पुलिस, राजस्व, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में ज्यादा सुधार की आवश्यकता है. शरीर चाहे जितना भी स्वस्थ हो अगर चेहरा बदसूरत हो तो लोग उसे पसन्द नहीं करते हैं.
अब परोक्ष रूप से भाजपा के लोग भी मोदीजी के नोटबंदी, भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम और GST से परेशान हैं धीरे-धीरे भाजपा से उदासीन होते जा रहे हैं. अगर इनलोगों में से आधे भी MVM में शामिल हो गये तो आगे आने वाले राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के प्रादेशिक चुनाव तथा 2019 के लोक सभा आम चुनाव में भाजपा को परेशानी हो सकती है. कुल मिलाकर हम देखते हैं कि संयुक्त विपक्ष यानि MVM मजबूत हो रहा है. MVM की जीत का निहितार्थ भाजपा की परेशानी है.

Note:- The above noted data has been collected from open source. So it should not be quoted. Causes of BJP Voters apathy are based on discussion within my circle. These should be discussed at readers level. Disagreement on above noted causes would be a good sign of our Democracy.
@BishwanathSingh




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