मुद्रीकरण(मोनेटाइजेशन) का एक देहाती संस्करण
पटना से कुछ दूरी पर स्थानीय युवकों ने दो स्टेशन के ठीक बीच एक महापुरुष के नाम पर हाल्ट स्टेशन बना दिया। वे लोग अगले स्टेशन से प्रतिदिन पटना का एक सौ टिकट खरीदकर लाते थे और एक रुपये अधिक लेकर यात्रियों को बेंच देते थे। इस व्यवस्था से निकटवर्ती सात गाँव के लोग लाभान्वित होते थे।
यह व्यवस्था इसलिये भी लोकप्रिय हुई क्योंकि अगले स्टेशन के बीच मे एक पुल पड़ता था। म बरसात भर इस पुल के नीचे के रास्ते पानी से भर जाते थे। इस कारण लोगों को पुल से होकर जाना पड़ता था। इस क्रम में एक-दो लोग प्रतिवर्ष ट्रेन के चपेट में आकर काल कलवित हो जाते थे।
लोग एक रुपया अधिक देकर इसी हाल्ट से ट्रेन पर चढ़ना या उतरना सुविधाजनक समझते थे। इन गांवों के लोगों के रिश्तेदार भी खुश थे। एक रुपया की अधिक कमाई में से दस रुपए ट्रेन के ड्राइवर को देना पड़ता था। शेष कमाई को युवक अपने में बांट लेते थे। युवकों ने श्रमदान कर उस हाल्ट को एक अच्छा स्वरूप दे दिया था और एप्रोच पगडंडी भी बना दिया था।
फिर लालू यादव जब रेल मंत्री हुए तो उस हाल्ट को वैधता प्रदान कर दिये और उस हाल्ट पर टिकट की बिक्री हेतु ठेकेदार बहाल कर दिये।
अब ड्राइवर की कमाई बंद हो गयी। ड्राइवर और उसके लोग उस हाल्ट को बनाये जाने और ठेकेदारन का विरोध करने लगे कि पिछले स्टेशनों के यात्रियों को पटना पंहुचने में अधिक समय लगता है। अब उस हाल्ट के मुद्रीकरण का समर्थन करने वालों की संख्या 95% के पार कर गयी।
जब लोग खुश हों और स्थानीय लोगों को रोजगार मिलने लगे तो मुद्रीकरण में कोई बुराई नहीं है।
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