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Showing posts from October, 2013

भारत के भूले बिसरे गौरव डा. सत्यनारायण सिन्हा

               Only for Adults who understand complications of Public saying.          1952 में डा. सत्यनारायण सिन्हा ने प्रथम लोकसभा के लिये सारण पूर्वी(अब छपरा) से कांग्रेस पार्टी के सांसद के रूप में नामांकन भरा। सांसद के नामांकन के पहले बहुत कम ही लोग इनके बारे में जानते थे. चुनाव प्रचार के क्रम में इनके बारे में बहुत सी जानकारियाँ सामने आयी. कुछ लोग इन्हे पायलट साहेब के नाम से, कुछ लोग इन्हे अम्बेसडर साहेब और कुछ लोग इन्हे स्वतन्त्रता सेनानी के नाम से इनका प्रचार किया। इन्हे ग्राम मल्खाचक का निवासी बताया गया. छपरा के लोग इनके व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हुए और भारी मतों से उन्हें अपना सांसद चुनकर प्रथम लोक सभा में भेज दिया।   Link for his membership sl 48     प्रो. सोम नाथ त्रिपाठी(से. नि. सम्पूर्णानन्द विश्व विद्यालय से)  के अनुसार डा. सत्यनारायण सिन्हा तिब्बत पर गहरी रूचि   रखते थे. उन्होंने आचार्य नरेन्द्र देव को स्वयम् हवाई जहाज चलाकर तिब्बत के भारत के लिये रणनीतिक ...

राजधर्म और राज-कर्मी By KC Dubey

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Shri KC Dubey      संस्कृत वांग्मय में धर्म शब्द का बड़ा ब्यापक स्वरुप है। धर्म के विषय में लिखा है-- "धर्मो विश्वस्य जगत प्रतिष्ठा लोके धर्मिष्ठं प्रजा उपसर्पन्ति धर्मेया पापं पनुदन्ति धर्मे सर्वम प्रतिष्ठातम तस्माधर्मे परमं वदन्ति (त्रै. आरण्यक प्रपाठक-10, अनुवाद-63). धर्म समस्त संसार की प्रतिष्ठा है। लोक जीवन में सभी लोग धर्म निष्ठ व्यक्ति के पास जाते हैं।धर्म से सब लोग अपने पाप को दूर करते हैं। धर्म में सब लोग प्रतिष्ठित हैं।इसलिये धर्म को सब लोग श्रेष्ठ कहते हैं। पूर्व मिमांसा अध्याय-1, पाठ-2, सूक्ति-2 में कहा गया है-- "चोदना लक्षण अर्थो धर्मः। उपदेश या पुनीत आदेश या वेदविहित विधि में प्रोत्साहित या प्रेरित करने वाले लक्षण युक्त कर्म को धर्म कहते हैं।      वैशेठिक अध्याय-1, अहिनक-1, सूक्ति-1 में "यतो अभ्युदय निःश्रेयस सिद्धि सह धर्मः।" अर्थात कहा गया है जिससे निःश्रेयस सिद्धि हो वह धर्म है। मनुस्मृति अध्याय-6, श्लोक-92 में कहा गया है -- "धृतिः क्षमा दामोस्तेयम शौचमिन्द्रिय निग्रहः। धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकर्म धर्म लक्षण।।" धीरता, क्षमा, मन र...

हे युवक तुम युवा हो! by Dr Kiran K Singh

            हे युवक तुम युवा हो!  प्रतिस्पर्धा  में  भाग  रहे, समय  कही  ना  निकल  जाये, अपनी  ही  गति  को  बढ़ा  रहे। लम्हे बीता,  दौड़ बीता ; चलने  की  आदत  सी  पड़ी, कही  रुके  तो  रुक  ना  जाये साँस भी  हाँफती  ही  रही। थमो  कभी  जो   थम   सको, रुको  कभी  जो  रुक  सको, सफ़र  का  छुट  बहुत  है  बाकी, उम्मिदें  है  गर  मुड़  सको।                                                                   सिमटा  हुआ  सा  जो  कंधे  पे  है, वो तेरी पहचान  नहीं। छूटा  हुआ  सा  जो  सफ़र  में  है, उससे  तेरी ...