ट्रेनों के विलम्ब से चलने के कुछ फायदे; एक व्यंग्य!

    ट्रेनों के विलम्ब से चलने के कुछ फायदे भी होते हैं. एक बार एक व्यक्ति को ट्रेन से यात्रा करने के पहले उसके घर पर कुछ काम आ गया. वह ट्रेन की लेट-लतीफी के कई किस्से सुन रखा था. सो उसने अपना काम निपटा लेना ही उचित समझा और मन ही मन भगवान से ट्रेन लेट करने हेतु प्रार्थना भी करता रहा. जब स्टेशन पँहुचा और टिकट लेकर प्लेटफार्म पर पँहुचा तो उसके ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह ट्रेन में चढ़कर एक उपयुक्त सीट पर बैठकर भगवानजी को धन्यबाद देते रहा. जब दस-बारह मिनट बाद भी ट्रेन नहीं खुली तो वह रेल विभाग को लेट-लतीफी के लिये कोसने लगा. उसके एक सह यात्री से नहीं रहा गया. उसने समझाया कि भगवानजी बड़े दयालु हैं. हो सकता है कि वे आप ही की तरह ट्रेन से यात्रा करने वाले किसी और भक्त की प्रार्थना स्वीकार कर लिये हों. इसलिये रेल विभाग कोसने के बजाय उस भक्त की प्रतीक्षा की जाय.
ट्रेनों के विलम्ब से चलने के कुछ फायदे:- 
1. शाम को लगभग छः बजे के आस-पास एक पैसेंजर ट्रेन सासाराम(बिहार) से आरा के लिये अपने 96 कि.मी के सफर पर खुलती है. इसे करीब साढ़े तीन घंटे का सफर पूरा कर अपने गन्तव्य पर पँहुचना होता है. यह ट्रेन आरा पँहुचने के पहले ही रुक जाती है और यह ट्रेन शायद ही किसी दिन रात को तीन बजे के पहले आरा पँहुचती है. इस ट्रेन को अगले सुबह चार बजे ही वापस आरा से सासाराम के लिये रवाना होना होता है. आरा तक जानेवाले यात्री अपना भला इस ट्रेन से उतर जाने में ही देखते हैं और उन्हें ख़ुशी इस बात पर होती है कि उनको अपने शहर के गंतव्य पर ले जाने हेतु पास ही में टेम्पो तैयार है. यात्रियों को टेम्पो का किराया कुछ ज्यादा देना पड़ता है, लेकिन उन्हें इसका मलाल नहीं होता है. ट्रेन के इस तरह लेट होने से दर्जनों टेम्पोवालों और टेम्पो पर भी आश्रित लोगों को फायदा होता है.
    इसी तरह के सैंकड़ों पैसेंजर गाड़ियाँ शाम को खुलकर पुनः अगले दिन सुबह में वापस लौटती हैं. इन ट्रेनों की खासियत यह है कि भले ही रात को लेट से पँहुचे, लेकिन सुबह एकदम समय पर खुलती हैं. कुछ लोग बताते हैं कि आरा स्टेशन पर अत्यधिक गन्दगी होने के कारण वहाँ मच्छरों का पहुत प्रकोप है. मच्छरों से बचने के लिये ही इस ट्रेन के ड्राइवर और गार्ड मिलकर आउटर सिग्नल के पहले ही एक साफ़-सुथरा स्थान पर अपनी ट्रेन को रोककर आराम करते हैं.
    2. ट्रेन नम्बर 12818 सुपर फास्ट गाड़ी दिल्ली से शाम में राँची-हटिया के लिये खुलती है. शायद ही किसी दिन यह गाड़ी समय पर खुलती हो. चार-पाँच घंटा लेट से खुलना इसकी आदत सी हो गयी है. राँची पंहुचते-पंहुचते यह गाड़ी आठ-दस घंटा लेट हो जाती है. इस ट्रेन के यात्री ऐसी परिस्थिति में थक कर चूर हो जाते हैं. पहले तो उन्हें दिल्ली में ही टिकट दलालों और पाकिटमारों का सामना करना पड़ता है, पुनः उन्हें रास्ते भर सामान चुराने वालों और अपने गंतव्य पर टेम्पो वालों का सामना करना पड़ता है. कुछ भुग्तभोगी यात्रियों का तो यह उद्गार भी होता है कि ट्रेन के बदले हवाई जहाज से आते तो अच्छा रहता!
     दिल्ली से अनेक प्रदेशों के राजधानियों को जाने वाली कई सुपर फास्ट गाड़ियों की यही स्थिति बताई जाती है.
3. मुगलसराय से पटना या गया की ओर जानेवाली लेट हो गयी गाड़ियों के यात्री विशेषकर Cattle Class और Semi Cattle Class में यात्रा करनेवाले काफी भूखे और थके हो जाते हैं. ऐसी स्थिति नशाखुरानी करने वाले गिरोहों के लिये काफी अनुकूल हो जाती है और वे लोग यात्रियों का सामान आसानी से उतार लेते हैं. इस तरह इस रूट पर सक्रिय नशाखुरानी करने वाले गिरोहों पर आश्रित लोगों के परिवार के लोगों का भरण-पोषण मजे में चलते रहता है और उनलोगों को ट्रेनों के लेट होने से काफी फ़ायदा होता है.
4. कुछ लोग कहते हैं कि लम्बी दूरी के ट्रेन जितना लेट से चलेंगे उतना ही अधिक फायदा हवाई कम्पनियों को होता है. इसी तरह मध्यम/लघु दूरी के ट्रेनों के लेट होने से बस/ट्रेकर/टैक्सियों को होता है.
5. ट्रेनों के अत्यधिक लेट से चलने के कारण ट्रेन ड्राइवर और गार्डों के शरीर में थकान होने लगती है, जिस कारण उन्हें झुकनी भी आने लगती है. इस कारण उनका ध्यान अपने मूल कर्तव्य से विमुख होने लगता है और कभी-कभी तो उनका ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त भी हो जाती है. कई बार ट्रेन दुर्घटनाओं की जाँच करने वाली समितियों ने दुर्घटना का कारण मानव चूक(Human Error) माना है. लेकिन इस तरह के मानव चूक को रोकने के लिये कोई ठोस कदम नहीं उठाये गये हैं. ट्रेन दुर्घटनाओं से, चाहे वे मालगाड़ी की हों या यात्री गाड़ी की हो, कबाड़ियों को और उनपर आश्रित लोगों को बहुत फ़ायदा होता है.
6. जब एक्सप्रेस गाड़ियां अपने गंतव्य पर लेट से पहुँचती है तो अधिकांश यात्री रोमिंग पर होते हैं. ऐसी स्थिति में यात्रियों के परिजन परेशान होने लगते हैं और तब तक फ़ोन करते रहते हैं, जब तक कि उनके परिजन गंतव्य रेल स्टेशन पहुँच न जाएँ। रोमिंग पर होने से मोबाइल और उसपर इंटरनेट इस्तेमाल करने पर प्रायः हर यात्री को औसतन दस रूपये खर्च हो ही जाते हैं. इस तरह गाड़ी लेट होने पर मोबाइल कम्पनियों को अरबों रूपये की कमाई हो जाती है.
7. इसी तरह ट्रेनों के अत्यधिक लेट से चलने के कारण रेल यात्रियों के शरीर में भी थकान होने लगती है और उन्हें झुकनी आने लगती है. यह परिस्थिति रेल में सक्रिय पाकिटमारों और यात्रियों के बैग/सामान उड़ाने वालों के लिये भी काफी अनुकूल होती है. इससे पाकिटमारों और यात्रियों के बैग/सामान उड़ाने वालों और उनपर आश्रित लोगों को बहुत फायदा होता है.
8. अंग्रेजों ने रेल के जंक्शन स्टेशनों पर मेल लेकर दूसरी ट्रेन(Connecting Train) को रवाना करने की व्यवस्था की थी और दोनों के बीच करीब कम से कम बीस मिनट का अन्तर रखा गया था. प्रायः यात्री सुबह करीब नौ-दस बजे या दोपहर बाद चार-पाँच बजे किसी जंक्शन स्टेशन पर अगली ट्रेन पकड़ कर आगे जाने हेतु पँहुचते हैं और उनकी जंक्शन स्टेशन पँहुचने वाली ट्रेन को आउटर सिग्नल पर रोक दिया जाता है तब उन्हें बड़ी निराशा होती है. और निराशा भी क्यों न हो; उन्होंने तो आगे की टिकट ले रखी है और उनके गंतव्य तक ले जाने वाली अगली ट्रेन दो से छः घंटे बाद खुलने वाली होती है. विडम्बना यह देखिये कि जंक्शन स्टेशन से खुलने वाली ट्रेन प्रायः समय पर खुलती है.
    बहुत देर तक माथा-पच्ची करने के बाद रेल टिकट रहने के बावजूद भी उन्हें अपने गंतव्य तक जाने के लिये बस का सहारा लेना पड़ता है. इस तरह ट्रेन के लेट होने से बसवालों को और उनपर आश्रित लोगों को बहुत फायदा होता है.
    पहले मुगलसराय से पूरब चितरंजन/धनबाद तक के रेल क्षेत्र और उत्तरी बिहार के रेल क्षेत्र को Lawless Route कहा जाता था. लेकिन इसका दायरा काफी बढ़ गया है और बढ़ता ही जा रहा है.
    हमारा रेल तन्त्र केन्द्र सरकार का चेहरा होता है. अगर चेहरा कुरूप हो जाय तो शरीर चाहे जितना भी स्वस्थ हो लोग उसे पसन्द नहीं करते। कुछ भुग्तभोगी रेलयात्रियों का कहना है कि परोक्ष रूप से रेल विभाग जितनी तत्परता से वाहन उद्योग, अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल क्षेत्र, नागरिक उड्डयन क्षेत्र और सड़क निर्माण से जुड़े लोगों की सेवा करता है, उतनी तत्परता से रेल यात्रियों की नहीं करता।
    पुरानी सरकार अपने रेल यात्रियों से ज्यादा ख़याल वाहन उद्योग, अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल क्षेत्र, नागरिक उड्डयन क्षेत्र, मोबाइल कम्पनियाँ और सड़क निर्माण से जुड़े लोगों का रखती थी. नयी सरकार से विशेषकर नये रेल मंत्री @sureshpprabhu और रेल राज्य मन्त्री @manojsinhabjp से लोगों को काफी उम्मीदें हैं और हो भी क्यों नहीं मोदीजी ने अपने चुनावी भाषणों में ट्रेनों के सम्बन्ध में काफी लम्बे-चौड़े वादे जो कर रखे हैं.
नोट:- यह आलेख भुग्तभोगियों या इस सम्बन्ध में जानकारी रखनेवाले लोगों से मिली जानकारियों पर आधारित है. इस आलेख में वर्णित तथ्यों पर अविश्वास करने के अनेकों कारण हो सकते हैं. पाठकों से अनुरोध है कि स्वयं भी कुछ भुग्तभोगियों से बात कर उनकी आपबीती सुन लें. पाठकों से यह भी अनुरोध है कि यदि इस सम्बन्ध में कोई आपबीती हो तो अवश्य बतायें। 
https://twitter.com/BishwaNathSingh

     

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