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अल साल्वाडोर का नया जेल उद्योग

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 अल साल्वाडोर के राष्ट्रपति नायिब बुकेले ने एक विचित्र विचार प्रस्तुत किया है। वे अपने देश में जेल को एक सेवा उद्योग के रूप में विकसित कर रहे हैं। वे अपने देश में एक जंगल की पहाड़ी पर बड़ा आदर्श जेल बनवा रहे हैं। उस जेल की क्षमता 40,000 कैदियों की होगी। उस जेल के एक भाग में अपने देश के कैदियों को दोष सिद्ध बंदियों को रखा जा रहा है। उस जेल के प्रभारी अधिकारी का दावा है कि उस जेल में बंदियों के स्वास्थ्य और उनके मानवाधिकारों पर भरपूर ध्यान दिया जाता है। अल साल्वाडोर ने बंदियों के रख-रखाव और देखभाल पर बहुत अध्ययन किया है। उस जेल के अधिकारी का कहना है कि उनका जेल प्रशासन खूंखार से खूंखार कैदियों जेल प्रबंधन में सक्षम है। साथ ही योग और शिक्षा के माध्यम से बंदियों को अच्छा और स्वस्थ नागरिक बनाने का प्रयास भी किया जायेगा। जेल प्रशासन ने CNN तथा अन्य मीडिया कंपनियों को उस जेल के भ्रमण कर फिल्म बनाने हेतु निमंत्रण दिया था। CNN ने उस जेल पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी बनाई है। अब अल साल्वाडोर के राष्ट्रपति ने अमरीकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो को प्रस्ताव किया है कि न्यायालय से दोषसिद्ध बंदियों...

स्मार्टफोन से सैटेलाइट संचार का स्वागत है।

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सोशल मीडिया से पता चलता है कि अगला वर्ष 2025 और 2026 सैटेलाइट फोन का वर्ष होने जा रहा है। इस सेवा को D2C या D2D(अर्थात Direct to Cell या Direct to Device) नाम दिया गया है। इस सम्बंध में कुछ जानकारी: - 1. ViaSat और BSNL मिलकर इस सेवा का सफल परीक्षण भी कर चुका है। ViaSat के पास अभी 20 सेटेलाइट अंतरिक्ष में कार्यरत है और अगले वर्ष कुछ सेटेलाइट छोड़ने वाला है। 2. AST Spacemobile और वोडाफोन आदि मिलकर यह सेवा देने वाला है। अभी इस कंपनी के पास 5 ब्ल्यूबर्ड नाम का सैटेलाइट अंतरिक्ष में है और अगले वर्ष 60 सैटेलाइट छोड़ने वाला है। 3. Eutalsat group(पहले का OneWeb) एयरटेल के साथ मिलकर अगले वर्ष से सेवा देने वाला है। 4. Luxamberg की एक सेटेलाइट सेवा कम्पनी हमारे देश की Jio से मिलकर यह सेवा देने वाला है। 5. Starlink अपने अंतरिक्ष में उपलब्ध सात हजार में से 370 से ऊपर के D2C सुविधायुक्त उपग्रहों के माध्यम से अमेरिका, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, पेरू, चिली जापान और यूक्रेन में वहां की स्थानीय टेलीकॉम कंपनियों से मिलकर इस सेवा का परीक्षण कर रहा है। स्टारलिंक के पास कुल सात हजार सेटेलाइट अंतरिक्ष म...

उपनाम लिखने की परम्परा

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एक प्रश्न और जिज्ञासा बहुत दिनों से समाज में चल रहा है कि आखिर हमारे देश में उपनाम लगाने या लिखने का आरम्भ कब से हुआ? समय समय पर पूर्व में भी यह प्रश्न लोगों के मन में उठते रहा है। बड़ों से मुझे जो जानकारी मिली है उसके अनुसार उपनाम लिखने की परम्परा रोमन साम्राज्य से प्रारम्भ हुआ। पहले तो श्री राम, श्री कृष्ण, महावीर, सिद्धार्थ, बाल्मीकि, धनवंतरी आदि के नामों में तो उपनाम हैं ही नहीं।                           श्रीराम यह सर्वविदित है कि जिस काल में रोमन साम्राज्य का पतन हो रहा था उसी काल में इस्लामिक साम्राज्य का उत्थान हुआ। उपनाम लिखने की परम्परा इस्लाम के विस्तार के क्रम में भारत आया। मुस्लिम राजाओं ने ही हमारे देश के लोगों को कोई न कोई उपनाम देना प्रारम्भ किया। तब नाम में दो शब्द होने लगे। समय आगे बढ़ा और नाम में तीसरा शब्द भी जुड़ने लगा। आज भी केरल, गुजरात और महाराष्ट्र आदि राज्यों में पहले अपना नाम फिर पिता का नाम और अंत में उनके गांव का नाम। उत्तर भारत में तो आर्थिक सामाजिक हैसियत के अनुसार चार शब्दों के नाम का भी प्र...

ऋणमुक्त अफ्रीकी देश माली

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चौदहवीं शताब्दी में अफ्रीकी देश माली के मनसा मूसा नाम के व्यक्ति उस समय विश्व सबसे धनी व्यक्ति थे। उनके पास माली के सभी सोना खदान का स्वामित्व था। The Head of Burkina Faso (L), Mali(M) and Niger(R) उपनिवेशीकरण के समर्थक लोग माली की गिनती अति निर्धन के रूप में करते रहते थे। माली जब फ्रांस से स्वतंत्र हुआ तब से वह कर्ज में डूबा ही रहता था। चार वर्ष पूर्व सेना का एक कैप्टन तख्ता पलट कर सत्ता अपने हाथ में लिया। कुछ समय बाद उसके पड़ोसी बुर्किना फासो और नाइजर में भी सेना के कैप्टन ने सैन्य तख्ता पलट कर सत्ता संभाली। तीनों देशों पर स्वाभाविक रूप से पश्चिमी आर्थिक प्रतिबंध लगे। फिर भी तीनों देशों ने मिलकर एक AES(Alliance of the States of Sahel) नाम का संगठन बनाकर आपसी सहयोग से अपने अपने देशों में कृषि, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुत सुधार किया। जन प्रतिनिधि और सरकारी अधिकारियों के वेतन में लगभग 20% की कटौती की तथा सभी बहुमूल्य धातुओं के खदानों का राष्ट्रीयकरण किया। इन सब उपायों का परिणाम यह हुआ कि माली गत सप्ताह संसार का ऋणमुक्त देश बन गया। बुर्किना फासो और नाइजर भी उसी रास्ते पर अग्र...

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना को बढ़ाने का औचित्य

 प्रधान मंत्री गरीब कल्याण योजना कोरोना काल में प्रारम्भ हुआ था। यह योजना दिनांक 31.12.2023 को समाप्त होने वाली थी।इस योजना में लगभग अस्सी करोड़ कथित रूप से गरीब लोगों को जन वितरण प्रणाली के माध्यम से प्रत्येक लाभार्थी को 5 kg प्रति माह अन्न देने का प्रावधान है। मान लीजिये कि मोदी सरकार इस योजना को आगे नहीं बढ़ाती तो ऐसे में क्या होता? मेरा उत्तर: इस योजना में प्रति वर्ष लगभग एक करोड़ टन अनाज वितरित किया जाता है। अब इतना अनाज FCI किसानों से एमएसपी पर नहीं खरीदती। तब किसान नेता शोर मचाते कि उनके अनाज को सरकार नहीं खरीद रही है। तब किसानों को इतना अनाज व्यापारियों के हाथों बेचना पड़ता। अब व्यापारी किस तरह से खरीद के मौसम में मूल्य कम करा देते हैं इसे हमने पूर्व सरकार में देखा है।  क्या किसान और किसानों के हितैषी यही चाहते हैं? या फिर नया किसान आंदोलन?

हमास इजरायल युद्ध बम, गोला, बंदूक के आगे

  कुछ विचित्र जानकारी 1. सन 1948 में यूएनओ ने पुराने इजरायल के नाम पर पुनः भूमध्य सागर के पूर्वी तट और फिलिस्तीन के निकट एक इजरायल नाम के देश की स्थापना की। फिलिस्तीनियों ने इसे स्वीकार नहीं किया और झगड़ा प्रारम्भ हो गया। लेकिन अमेरिका के सहयोग से इजरायल फलता फूलता रहा। 2. सन 1948 की तुलना में फिलिस्तीनियों ने अपनी जनसंख्या दस गुनी बढ़ा ली। लेकिन यहूदियों के समूल नाश के सिद्धांत पर बढ़ते हुए सिर्फ इस्लाम की कट्टरता बढ़ाते रहे। 3. इसके विपरीत इसराइली लोकतांत्रिक विधि से अपनी बुद्धि और परिश्रम तथा व्यापारिक कौशल से जल प्रबंधन और आधुनिक कृषि को बढ़ाते रहे। 4. स्थिति यह है कि पूरी फिलिस्तीन आबादी इसराइली कम्पनियों के पानी और कृषि उपज पर आश्रित हो गए।  5. स्थिति यह हो गई है कि गाजा पट्टी के बीस लाख और वेस्ट बैंक के तीस लाख फिलिस्तीनी को यदि पूर्ण रूप से पानी रोक दे तो विश्व भर के मुसलमान और सेकुलर चाहे जितना पैसा दे दें उन्हे पानी उपलब्ध नहीं करा सकते। 6. इसराइली सेना ने गाजा स्थित "नेशनल इस्लामिक बैंक ऑफ गाजा" को पूर्ण रूप से ध्वस्त कर दिया है। अर्थात गाजा वासी बैंकिंग सेवा से वं...

चंद्रयान 3 ने खोला संभावनाओं के द्वार

 पृथ्वी पर का वायु मण्डल उल्कापात से हमारी रक्षा करता है। जब ब्रह्माण्ड से आकर उल्का पिंड तीव्र गति से हमारे वायु मण्डल से टकराते हैं तो घर्षण से भस्म होकर छोटे छोटे कण के रूप में बिखर जाते हैं। चूंकि हमारी पृथ्वी का लगभग 71 प्रतिशत भाग जलमग्न है अतः वर्षा से वे उल्का पिंड के कण प्रायः उतने ही भाग जल में समा जाते हैं। उन पदार्थों का उत्खनन अत्यंत ही कठिन और खर्चीला होता है। इसके विपरित चांद के वायु मण्डल विहीन वातावरण में उल्का पिंड या तो जमीन में धंस जाते हैं या चट्टान से टकराकर कर कई टुकड़ों में टूट कर सतह पर बिखर जाते हैं। अब कहा जाता है कि उल्का पिंड में बहुमूल्य पदार्थ हो होते हैं। इस कारण चांद पर बहुमूल्य पदार्थ या धातुओं का उत्खनन आसान है। उम्मीद है इसरो अब उत्खनन की नई चुनौतियों से निबटते हुए हमारे देश को बहुमूल्य धातुओं और He3(Helium isotope) जैसे उच्च ऊर्जा वाले गैस को लाने की दिशा में अग्रसर होगा। चंद्रयान 3 का चांद पर सफल पत्तन एक शुभ संकेत है। इस सफल प्रयोग ने हमारे वैज्ञानिकों का मनोबल बढ़ाया है। इसने साथ ही हम भारतीयों में भी पहले से व्याप्त हीनभावना को भी समाप्त किय...