खाद्यान्न की खरीद, उसके भण्डारण और वितरण हेतु एक छोटा कदम!
हमारे देश में खाद्यान्नों की खरीद, उसके भण्डारण और वितरण की व्यवस्था Food Corporation of India द्वारा किया जाता है. अधिक अन्न उपजाने वाले किसान अपना धान गेहूं आदि अपने ट्रैक्टरों पर लाद कर FCI के खरीद केन्द्र तक ले जाते हैं और वहाँ उन्हें घंटों इंतजार करना पड़ता है. बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ किसान बताते हैं कि उन्हें FCI के बाबू लोगों से काफी आरजू-मिन्नत भी करनी पड़ती है और दलालों का सामना भी करना पड़ता है. कभी-कभी तो उन्हें MSP से भी कम दाम पर अपना खाद्यान्न बिचौलियों के हाथों बेंचना पड़ता है.
इस व्यस्था से पीड़ित अधिकांश किसान अपना खाद्यान्न साहूकारों के हाथों बेंचते हैं या अपना खाद्यान्न निकट के चावल/आटा मीलों के पास पँहुचा देते हैं और उन्हें पैसा बाद में लेने के लिए बुलाया जाता है. अन्ततः किसानों को इतनी परेशानियों के बाद भी उनकी अपेक्षा के अनुसार अपने खाद्यान्नों का मूल्य नहीं मिलता है तथा परिवहन आदि में अनावश्यक खर्च भी होता है.
सभी ग्राम पंचायतों में निचले सरकारी विद्यालयों में चलने वाले मध्यान्न भोजन हेतु चावल चाहिये। साथ ही वहाँ लाल/पीला कार्डधारियों आदि के लिये भी खाद्यान्न चाहिये होता है. अगले एक वर्ष की इनकी मांगों की गणना करना बहुत कठिन नहीं है. भारत का लगभग एक तिहाई ग्राम-पंचायतें से भी ज्यादा अपनी आवश्यकता से ज्यादा खाद्यान्न पैदा करते हैं. अगर इन ग्राम-पंचायतों में ही उचित भण्डारण-गृह भागीदारी के आधार पर बना दी जाय और उस ग्राम-पंचायत की आवश्यकतानुसार खाद्यान्न उसी ग्राम-पंचायत के किसानों से खरीद कर वहीँ इनका भण्डारण किया जाय तो वहीँ से निचले स्कूलों के मध्यान्न भोजन और लाल/पीला कार्डधारियों आदि को खाद्यान्न की आपूर्ति करने से परिवहन आदि के खर्चों में काफी कमी आ जाएगी।
कुछ लोग तो यहाँ तक बताते हैं कि जिन स्कूलों में सौ से कम विद्यार्थी होते हैं या लाल/पीला कार्डधारियों की संख्या कम होती है वहाँ के लिये FCI गोदाम से खाद्यान्न लाने में आधा ट्रैक्टर भी राशन नहीं भर पाता, लेकिन ढुलाई भाड़ा पूरा ट्रैक्टर का देना पड़ता है. इस कारण राशन लाना महँगा पड़ता है. इसकी भरपाई के लिये ऐसे स्कूलों के अध्यापक और अभिभावक समिति के लोग फर्जी विद्यार्थियों का नामांकन कर लेते हैं. यही काम डीलर लोग भी फर्जी लाल/पीला राशन कार्ड बनवा कर करते हैं.
यदि FCI के नियमों में मामूली बदलाव कर दिया जाय कि धान उपजाने वाले किसान FCI द्वारा इंगित चावल मिलों में अपना धान पँहुचा देते तो किसानों की पीड़ा काफी कम हो जाती। यह सर्व विदित है कि चावल मिलों के पास भण्डारण की क्षमता काफी अधिक है, जिसका लाभ आम लोगों और विशेषकर किसानों को नहीं मिल पाता। भण्डारण के अभाव में आये दिन अनाजों के सड़ने के समाचार अख़बारों और टीवी पर आते रहते हैं. नयी व्यवस्था से मध्यान्न भोजन और लाल/पीला कार्डधारियों आदि के लिये भी खाद्यान्न पास के चावल मिलों से ही विद्यालयों/राशन डीलरों को मिल जाता और परिवहन खर्च में काफी कमी आने से आम जनता को लाभ होता।
इस व्यवस्था की निगरानी का दायित्व स्वाभाविक रूप से ग्राम-पंचायत सभा की होगी तथा प्रखण्ड स्तर से भी निगरानी रखी जा सकती है. मोबाइल फोन और सोशल मीडिया क्रान्ति आने से अब ग्रामीण भी अपना नागरिक धर्म निभाने लगे हैं यानि नागरिक समाज भी इसमें अपनी सकारात्मक भूमिका निभायेगा।
देखने में तो यह बचत मामूली लगती है, लेकिन यह बचत राष्ट्रीय स्तर पर गणना करने पर करोड़ों में पँहुच जाएगी। इस कार्य को पूरा करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार के सम्बन्धित विभागों को मिलकर काम करना पड़ेगा। जब किसानों और लाभुकों को इसका लाभ मिलने लगेगा तो जन-कल्याणकारी राज्य का सपना भी साकार होने लगेगा और हमारा राष्ट्र मजबूत बनेगा।
नोट:- यह आलेख उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ किसानों के अनुभवों पर आधारित है. इनमे से कुछ किसान तो अब शीघ्र ही सोशल मीडिया पर भी आने वाले हैं तब वे लोग अपना विचार/व्यथा स्वयं ही व्यक्त करेंगे।
https://twitter.com/BishwaNathSingh
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इस व्यस्था से पीड़ित अधिकांश किसान अपना खाद्यान्न साहूकारों के हाथों बेंचते हैं या अपना खाद्यान्न निकट के चावल/आटा मीलों के पास पँहुचा देते हैं और उन्हें पैसा बाद में लेने के लिए बुलाया जाता है. अन्ततः किसानों को इतनी परेशानियों के बाद भी उनकी अपेक्षा के अनुसार अपने खाद्यान्नों का मूल्य नहीं मिलता है तथा परिवहन आदि में अनावश्यक खर्च भी होता है.
सभी ग्राम पंचायतों में निचले सरकारी विद्यालयों में चलने वाले मध्यान्न भोजन हेतु चावल चाहिये। साथ ही वहाँ लाल/पीला कार्डधारियों आदि के लिये भी खाद्यान्न चाहिये होता है. अगले एक वर्ष की इनकी मांगों की गणना करना बहुत कठिन नहीं है. भारत का लगभग एक तिहाई ग्राम-पंचायतें से भी ज्यादा अपनी आवश्यकता से ज्यादा खाद्यान्न पैदा करते हैं. अगर इन ग्राम-पंचायतों में ही उचित भण्डारण-गृह भागीदारी के आधार पर बना दी जाय और उस ग्राम-पंचायत की आवश्यकतानुसार खाद्यान्न उसी ग्राम-पंचायत के किसानों से खरीद कर वहीँ इनका भण्डारण किया जाय तो वहीँ से निचले स्कूलों के मध्यान्न भोजन और लाल/पीला कार्डधारियों आदि को खाद्यान्न की आपूर्ति करने से परिवहन आदि के खर्चों में काफी कमी आ जाएगी।
कुछ लोग तो यहाँ तक बताते हैं कि जिन स्कूलों में सौ से कम विद्यार्थी होते हैं या लाल/पीला कार्डधारियों की संख्या कम होती है वहाँ के लिये FCI गोदाम से खाद्यान्न लाने में आधा ट्रैक्टर भी राशन नहीं भर पाता, लेकिन ढुलाई भाड़ा पूरा ट्रैक्टर का देना पड़ता है. इस कारण राशन लाना महँगा पड़ता है. इसकी भरपाई के लिये ऐसे स्कूलों के अध्यापक और अभिभावक समिति के लोग फर्जी विद्यार्थियों का नामांकन कर लेते हैं. यही काम डीलर लोग भी फर्जी लाल/पीला राशन कार्ड बनवा कर करते हैं.
यदि FCI के नियमों में मामूली बदलाव कर दिया जाय कि धान उपजाने वाले किसान FCI द्वारा इंगित चावल मिलों में अपना धान पँहुचा देते तो किसानों की पीड़ा काफी कम हो जाती। यह सर्व विदित है कि चावल मिलों के पास भण्डारण की क्षमता काफी अधिक है, जिसका लाभ आम लोगों और विशेषकर किसानों को नहीं मिल पाता। भण्डारण के अभाव में आये दिन अनाजों के सड़ने के समाचार अख़बारों और टीवी पर आते रहते हैं. नयी व्यवस्था से मध्यान्न भोजन और लाल/पीला कार्डधारियों आदि के लिये भी खाद्यान्न पास के चावल मिलों से ही विद्यालयों/राशन डीलरों को मिल जाता और परिवहन खर्च में काफी कमी आने से आम जनता को लाभ होता।
इस व्यवस्था की निगरानी का दायित्व स्वाभाविक रूप से ग्राम-पंचायत सभा की होगी तथा प्रखण्ड स्तर से भी निगरानी रखी जा सकती है. मोबाइल फोन और सोशल मीडिया क्रान्ति आने से अब ग्रामीण भी अपना नागरिक धर्म निभाने लगे हैं यानि नागरिक समाज भी इसमें अपनी सकारात्मक भूमिका निभायेगा।
देखने में तो यह बचत मामूली लगती है, लेकिन यह बचत राष्ट्रीय स्तर पर गणना करने पर करोड़ों में पँहुच जाएगी। इस कार्य को पूरा करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार के सम्बन्धित विभागों को मिलकर काम करना पड़ेगा। जब किसानों और लाभुकों को इसका लाभ मिलने लगेगा तो जन-कल्याणकारी राज्य का सपना भी साकार होने लगेगा और हमारा राष्ट्र मजबूत बनेगा।
नोट:- यह आलेख उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ किसानों के अनुभवों पर आधारित है. इनमे से कुछ किसान तो अब शीघ्र ही सोशल मीडिया पर भी आने वाले हैं तब वे लोग अपना विचार/व्यथा स्वयं ही व्यक्त करेंगे।
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"production vs requirement vs supply vs storage all commercialization so absurd"
2. Bhagwan Singh @s_bhag
2. Bhagwan Singh @s_bhag
"This is good a suggestion. Govt should adopt it."
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