डपोरशंख की राजनीति

एक समय की बात है एक निर्धन व्यक्ति की सेवा से प्रसन्न होकर एक ऋषि ने उसे एक शंख देकर उसे गृहस्थ आश्रम में लौट जाने को कहा। ऋषि ने उस शंख की विशेषता बताई कि इससे जो मांगोगे वह मिल जायेगा। शंख लेकर वह व्यक्ति अपने घर लौट आया। समय समय पर वह व्यक्ति अपनी आवश्यकतानुसार जो मांगता था। वह उसे मिल जाता था।

अब उस निर्धन व्यक्ति की गृहस्थी मजे में चलने लगी। इस शंख की चर्चा धीरे धीरे फैलते हुए स्थानीय राजा के पास पंहुच गई। एक दिन राजा के आदमी व्यक्ति को उसके शंख के साथ पकड़ कर अपने राजा के पास ले गए। राजा ने उस शंख से कुछ मांगा। अपनी विशेषता शंख ने मांगी गई वस्तु को उपलब्ध करा दिया। राजा के मन में लालच जागी और राजा ने उस शंख को राजा को देने का आदेश दिया। चूंकि वह शंख उस व्यक्ति का जीवन का आधार बन गया था अतः उसने शंख देने से इंकार कर दिया। राजा ने उस व्यक्ति को इतना डराया कि उसे शंख को राजा को देना ही पड़ा। 

दुखी होकर वह व्यक्ति अपने घर लौट आया। उसे विचार आया कि इसकी सूचना ऋषि को देनी चाहिए। शीघ्र ही एक दिन उसने ऋषि के पास जाकर सारी बात बता दी। ऋषि ने कहा कि कोई बात नहीं है और ऋषि ने उस व्यक्ति को एक दूसरा बड़ा शंख दे दिया। ऋषि ने दूसरे बड़े शंख का नाम डपोरशंख रख दिया।

पुनः इस दूसरे शंख की चर्चा जोरों से होने लगी। इसे जानकर राजा ने उसे दूसरे शंख के साथ अपने आदमियों को पकड़ कर लाने को कहा।

राजा के पास उस व्यक्ति को डपोर शंख के साथ प्रस्तुत किया गया। अबकी बार राजा ने उस डपोरशंख से एक गाय मांगी। डपोरशंख बोला कि एक क्या चार गाय मिलेगी लेकिन चार दिन बाद मिलेगी। डपोरशंख की इस विशेषता से राजा बहुत प्रसन्न हुआ और उसे पहला शंख लौटा दिया। वह व्यक्ति अपना शंख लेकर वापस अपने घर आया और ऋषि की आज्ञा के अनुसार अपने परिवार सहित राजा का राज छोड़कर चला गया।

चार दिन बीतने पर राजा डपोरशंख से गाय नहीं मिलने की बात बताई। डपोरशंख ने राजा को कोई बहाना बना दिया। राजा गाय नहीं मिलने की शिकायत समय समय पर करते रहा और डपोरशंख बहाना बनाते रहा।

अब आज की राजनैतिक स्थिति में इतना ही परिवर्तन हुआ है कि वह डपोरशंख हमारे नेताओं के पास पंहुच गया है। ऐसा मशीन लाऊंगा कि इधर से आलू डालो उधर से सोना निकलेगा।

पांच वर्ष में बुलेट ट्रेन चलने लगेगा, किसानों की आय पांच वर्ष में दुगनी हो जायेगी, हर वर्ष दो करोड़ लोगों को रोजगार दूंगा आदि आदि। हर महिला को पंद्रह सौ रुपया मिलेगा आदि आदि।

अब दूसरा नेता दस लाख नौकरी दूंगा। दस लाख क्या हमलोग तो बीस लाख लोगों को नौकरी/रोजगार देना चाहते हैं। 

जनता प्रतीक्षा करते रहती है और डपोरशंखी नेता वादा करते रहते हैं।

जाति ~ पाती, सवर्ण ~ पिछड़ा, पिछड़ा ~ अति पिछड़ा, दलित ~ मनुवादी, बाहरी ~ भीतरी आदि खेमों में बंटी जनता डपोरशंखी नेताओं को झेलने को अभिशप्त है।

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