एक पूर्व जमींदार साहेब का जलसा!

    आज़ादी के कुछ ही सालों बाद सरकार द्वारा जमींदारी प्रथा समाप्त कर दी गयी. लेकिन जमींदार लोगों के पास अभी भी काफी जमीन बच गयी थी. एक ऐसे ही जमींदार साहेब को अपने और अपने खानदान की शान और अपने भविष्य की चिन्ता सताने लगी.
    उस जमींदार साहेब के इलाके के ही एक गांव में एक मेहनती किसान रहते थे. वे आसानी से पैसा कमाने या अनकर पैसा चतुराई से ले लेने में विश्वास नहीं रखते थे. उस किसान को नये ज़माने के साथ-साथ चलने की भी बड़ी ललक थी. इसलिये वे अपने एक मात्र पुत्र को एक बड़ा इंजीनियर बनाना चाहते थे. इसके लिये उन्होंने अपने पुत्र सुमित को हमेशा उत्प्रेरित करते रहते थे.
    अब उनके पुत्र के मन में भी इंजीनियर बनने की लालसा बढ़ने लगी और अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु मन लगाकर पढ़ने लगा. उसका मेहनत व लगन रंग लाया और उस लड़के का दाखिला एक अच्छे सरकारी इंजीनियरिंग शिक्षण संस्थान में हो गया. जब उक्त जमींदार साहेब को इस बात की जानकारी हुई कि उनके इलाके का एक किसान के बेटे का नाम इंजीनियरिंग में लिखा गया है तब यह बात उनकी शान पर बन आयी. उन्होंने अपने कुछ खेत बेंचकर और अपने जुगाड़ के बल पर अपने बेटे का नाम भी एक निजी इंजीनियरिंग कॉलेज में लिखवा दिया।
    सुमित ने अपनी पढाई पर मन लगाया। इनके पिताजी ने भी अपनी किसानी से कमाई और कुछ खेत गिरवी रखकर पढाई के खर्चा हेतु पैसा का प्रबन्ध करते रहे। एक बार तो खेत का कोई ग्राहक नहीं मिलने पर सुमित की माँ ने अपने कुछ गहने भी बेंचे थे। पढाई ख़त्म होने के कुछ महीने पहले ही एक कम्पनी में सुमित का एक बड़े कम्पनी में कैंपस प्लेसमेंट हो गया, लेकिन सुमित ने इसकी जानकारी किसी को नहीं दी; यहाँ तक कि अपने माँ-पिताजी को भी कोई जानकारी नहीं दी। वे अपनी नौकरी को एक सरप्राइज गिफ्ट में अपने माँ-पिताजी की देना चाहते था।
    बी.टेक की पढाई ख़त्म हुई और सुमित घर आकर अपने पिता के काम में हाथ बंटाने लगा. उसके गांव के लोगों को सुमित को खेतों में काम करते देखना अटपटा लग रहा था. गांव में इस बात पर चर्चा होने लगी कि आखिर खेती ही करना था तो सुमित के पिता ने अपने खेतों को गिरवी क्यों रखा साथ ही उसकी माता ने अपने कुछ गहने क्यों बेंचे? हिम्मत जुटा कर एक बुजुर्ग ने सुमित के पिता से सवाल पूछ ही लिया कि सुमित को नौकरी कब मिलेगी? लेकिन सुमित की माँ खुश थी कि इंजीनियरिंग की पढाई पूरा करने के बाद भी वह अपने घर लौट आया. अब वह अपने बेटे की शादी कर अपने लिये भी एक अच्छी पतोहु लाना चाहती थी. उसके अनुसार जीवन का मतलब अच्छे संस्कारों के साथ जीना और अपने जैसा एक-दो प्राणी पैदा कर अपना जीवन पूरा कर इस संसार से विदा लेना। पहले उसने कई किस्से सुन रखे थे कि इंजीनियरिंग की पढाई पूरा कर गांव से भाग गया और बाहर में ही अपनी शादी कर अपने माँ-बाप को भूल गया.
    सुमित के पिताजी ने भी अपने पुत्र को नौकरी का आवेदन देने की सलाह दी ताकि जल्दी ही उसकी माँ की इच्छा के अनुसार शादी कर दी जाये। लेकिन सुमित अपने पिता की बात हंस कर टाल देता और अपने खेती के कार्य में जुट जाता। इसी बीच बगल वाले जमींदार साहेब का बेटा भी अपनी इंजीनियरिंग की पढाई पूरा कर अपने गांव वापस आ गया था और ठाट से जीवन जीने लगा था. वह प्रायः अपने ग्रामीणों से टूटी-फूटी अंग्रेजी में ही बात करता था जबकि सुमित अपने लोगों से अपनी पुरानी गंवई बोली में ही बात करता। पहनावा से तो कोई कह ही नहीं सकता था कि उसने शहर जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त की है.
    अब पूरे इलाके में इस बात की चर्चा होने लगी कि इनके इलाके में पहली बार दो इंजिनियर बड़े शहर से पढ़कर आये हैं. चर्चा इस बात पर भी होने लगी कि आखिर कौन ज्यादा पढ़ कर आया है. यह चर्चा इलाके में इतनी जोर पकड़ने लगी कि कुछ लोग जमींदार साहेब घर भी पँहुच गये और दोनों इंजीनियरों के बीच जबानी दंगल की मांग करने लगे. लोगों की इस पुरजोर मांग ने जमींदार साहेब के सामने एक विकट स्थिति पैदा कर दी. जमींदार साहेब ने कुछ इधर-उधर की बात सोचकर अपनी खानदान की इज़्ज़त का ख्याल रखते हुए बिना अपने बेटे यानि छोटे जमींदार से बिना पूछे ही इसके लिये हामी भर दी. अब तो लोग ख़ुशी से उछल पड़े क्योंकि इधर कई सालों से कोई कुश्ती का भी दंगल नहीं हुआ था. इलाके में मनोरंजन के साधन भी कम थे सो जमींदार साहेब के यहाँ आये सभी लोग सीधे दूसरे गांव के सुमित के पिताजी के पास पँहुच गये और दोनों इंजीनियरों के बीच जबानी दंगल की माँग दुहराने लगे. इस अटपटा माँग पर सुमित के पिता पहले तो असमंजस में पड़ गये, लेकिन अपने पुत्र पर भरोसा के चलते उन्होंने भी जबानी दंगल के लिये अपनी सहमति दे दी. इस पर उपस्थित लोग ख़ुशी से नाचने लगे. यह बात जंगल की आग की तरह पूरे इलाके में फ़ैल गयी.
    अब लोगों के सामने एक विकट समस्या आ गयी कि इस जबानी दंगल के विजेता का फैसला कौन करेगा? कई दिनों की के विचार-मंथन के बाद लोगों ने इसका भी हल निकाल ही लिया। लोगों ने तय किया कि पूरे इलाके से पाँच प्रतिष्ठित लोगों को पञ्च के रूप में चुना जाये जो अपने में से एक पञ्च प्रमुख चुन लेंगे और पांचों पञ्च मिलकर इस जबानी दंगल के विजेता का एलान कर देंगे। पूरे इलाके के लोगों ने अपने इस कार्य को जल्दी ही पूरा कर लिया और जबानी दंगल का तिथि और स्थान भी तय हो गया। यह तय हुआ कि चूँकि हनुमानजी के सुमिरण कर ही इलाके के पहलवान दंगल लड़ते थे अतः दस दिन बाद पड़ने वाला मंगलवार को दोपहर में जबानी-दंगल होगा। उस दंगल की तैयारी भी शुरू हो गयी.
    जबानी-दंगल के नाम से सुमित बाबू की परेशानी बढ़ने लगी. उन्हें अपनी कोई चिन्ता नहीं थी लेकिन वे अपने माता-पिता की इज़्ज़त को लेकर चिन्तित होने लगे. सुमित बाबू स्वयं तो इलेक्ट्रिकल इंजिनियर की डिग्री लेकर आये थे. लेकिन छोटे जमींदार साहेब के इंजीनियरिंग का विषय की जानकारी उन्हें नहीं थी. सुमित बाबू ने इसे जानने का बहुत प्रयास किया, परन्तु असफल रहे. इस बिन्दु पर हार कर वे सामान्य इंजीनियरिंग को पढ़ने में लग गये. अब उनका अपने खेतों में आना-जाना भी छूट गया. उनके आस-पास के लोगों को भी चिन्ता सताने लगी कि आखिर जबानी दंगल के लिये इतना ज्यादा पढ़ने की क्या जरुरत?  
    उधर जबानी-दंगल के नाम से ही छोटे जमींदार इंजिनियर साहेब के भी पसीने छूटने लगे. उन्हें अपने बारे में पूरा पता था. उन्हें तनिक भी विश्वास नहीं था कि वे दंगल में किसी भी इंजिनियर से दो मिनट भी टिक पायेंगे। उनके पास इंजीनियरिंग का ज्ञान भले ही कम था लेकिन उन्हें अपने खानदानी तिकड़म पर कोई भी मामला जीतने का पूरा भरोसा था. इसलिये वे आगामी जबानी-दंगल को तिकड़म और पैसे के बल पर जीतने की तैयारी शुरू कर दी. वे सभी प्रकार के तिकड़म लगाकर भी किसी भी पञ्च को डिगाने में कामयाब नहीं हुए. अब छोटे जमींदार इंजिनियर साहेब ने इलाके के लगभग दो दर्जन होशियार बेरोजगारों की तलाशी शुरू कर दी. जल्दी ही उन्हें दो दर्जन होशियार बेरोजगार मिल गये. छोटे जमींदार ने उन बेरोजगारों को बताया कि जबानी दंगल में सिर्फ उन्हें तब ताली बजानी है जब ये बोलते समय अपना दायां हाथ से अपने बाल सहलाना प्रारम्भ करेंगे। जब वे अपना हाथ नीचे कर लेंगे तो ताली बजाना बंद कर देना है. इसके लिये कार्य के लिये सबों को एक-एक सौ रुपये मिलेंगे। सबों को इस बात का प्रचार भी करना है कि छोटे जमींदार बहुत ज्यादा पढ़-लिख कर आये हैं. दंगल के पहले आधा पैसा मिलेगा और दंगल जीतने के बाद आधा, लेकिन उन लोगों को इस योजना की गोपनीयता निभानी होगी। गोपनीयता भंग करने वालों से जमींदारी तरीके से उसका दस गुना पैसा वसूला जायेगा। इन बेरोजगारों के पास और कोई रास्ता भी नहीं था सो उन लोगों ने छोटे जमींदार की शर्त मानकर पच्चास-पच्चास रुपये लेकर अपने काम में जुट गये.
    नियत समय से पहले ही जबानी दंगल देखने हेतु दूर-दूर से लोग आने लगे. दंगल का स्थान एक मैदान के किनारे पर बनाया गया था. दंगल का मंच इलाके से बहुत से चौकी मंगाकर और चौकी पर चौकी रखकर बनाया गया था. समय पर जबानी-दंगल शुरू हुआ. ताली बजाने वालों ने भी छितरा कर पूरे मैदान में अपना स्थान ग्रहण कर लिया। दंगल के दोनों पहलवान और उनके पिताजी तथा गण्य-मान्य लोगों ने भी अपना-अपना स्थान ग्रहण किया। सबसे पहले पञ्च प्रमुख ने जबानी दंगल का नियम बताना प्रारम्भ किया। पहले तो उन्होंने बताया कि कोई भी पञ्च पढ़ा-लिखा नहीं है. फिर भी उनलोगों के द्वारा कुछ नियम तय किये गये हैं. पहला नियम यह है कि पहले छोटे जमींदार सुमित बाबू से एक-एक कर तीन प्रश्न पूछेंगे जिसका जवाब सुमित बाबू को देना पड़ेगा। उसके बाद सुमित बाबू छोटे जमींदार से एक-एक कर तीन प्रश्न पूछेंगे जिसका जवाब छोटे जमींदार साहेब को देना होगा। दूसरे चक्र में छोटे जमींदार एक कहानी सुनावेंगे और उसके बाद सुमित बाबू एक कहानी सुनावेंगे। दोनों चक्र के बाद सभी पञ्च आपस में विचार-विमर्श कर अपना फैसला जल्दी ही सुना देंगे।
दंगल शुरू हुआ. बारी थी छोटे जमींदार के प्रश्न पूछने की.
छोटे जमींदार:- What?      
सुमित बाबू प्रश्न के वाक्य के पूरा होने की प्रतीक्षा करने लगे. छोटे जमींदार चुप हो गये. करीब एक मिनट तक सन्नाटा छाया रहा.
पञ्च लोगों ने समझा कि शायद सुमित बाबू को इस प्रश्न का जवाब नहीं मालूम है. अतः पञ्च प्रमुख ने छोटे जमींदार से अगला प्रश्न पूछने को कहा.
छोटे जमींदार:- How?
सुमित बाबू पुनः अपने प्रतिद्वंद्वी से प्रश्न का वाक्य पूरा होने की प्रतीक्षा करने लगे. पुनः करीब एक मिनट तक सन्नाटा छाया रहा. इस पर पंचों ने पुनः समझा कि इस प्रश्न का जवाब भी सुमित बाबू को नहीं आता है. अतः पञ्च प्रमुख ने छोटे जमींदार को अगला प्रश्न पूछने का इशारा कर दिया।
छोटे जमींदार:- Where? इस बार भी सुमित बाबू प्रश्न को पूरा होने की प्रतीक्षा करने लगे. तब तक समय समाप्त हो गया.
अब पञ्च प्रमुख ने सुमित बाबू को अपना प्रश्न पूछने को कहा.
Sumit:- In  in your first question you have mentioned a single word "what". May it be called a question?
छोटे जमींदार:- Eleven......, fifteen....., six...., thirty seven..., seventeen.., fifty one. उसके बाद छोटे जमींदार ने अपने दाहिने हाथ से अपने माथा का बाल सहलाना प्रारम्भ किया। पूरे मैदान से तालियों की आवाज गूंजने लगी.
अब पञ्च प्रमुख ने सुमित बाबू को अपना दूसरा सवाल पूछने का इशारा किया।
Sumit:- In your second question again you have also mentioned a single word "how". How it can be called a question?
छोटे जमींदार:- Thirteen....., eighty two...., seventy five..., nine.., fifteen.
पुनः छोटे जमींदार ने अपने दाहिने हाथ से माथा सहलाया और पूरे मैदान से तालियों की आवाज आने लगी.
अब पञ्च प्रमुख ने सुमित बाबू को अपना तीसरा सवाल पूछने का इशारा किया।
Sumit:- Lastly you have mentioned a single word "where". Is it a complete sentence?
छोटे जमींदार:- No, It is not a complete sentence. छोटे जमींदार ने अपना दाहिना हाथ उठाया ही था कि पूरे मैदान से तालियां बजने लगीं। दर्शकों में से जिनको कुछ भी नहीं समझ में आ रहा था वे यह समझ कर तालियां बजाने लगे कि शायद इस बार छोटा जमींदार ने तगड़ा जवाब दिया है.
अब जबानी-दंगल का पहला चक्र पूरा हुआ. सुमित बाबू को तो कुछ समझ ही में नहीं आ रहा था कि आखिर हो क्या रहा है. पञ्च प्रमुख ने अगला चक्र प्रारम्भ होने के पहले पाँच मिनट का ब्रेक दे दिया। मैदान में लोग छोटे जमींदार की खूब तारीफ करने लगे.
अब दंगल का दूसरा चक्र प्रारम्भ हुआ. पञ्च प्रमुख ने छोटे जमींदार से एक कहानी सुनाने को कहा--
छोटे जमींदार:- There was a small kingdom beneath the Himalaya. Its people were used to keep cows in heard. All cows were four footed animal. Cowboys took their cows daily to graze in green fields. One day a farm owner objected. The cowboys farmer को beat दिया(इसके बाद छोटे जमींदार अपना माथा सहलाने लगे और मैदान के सभी कोनों से तालियाँ बजने लगी). मामला king के पास पँहुचा। King ने मामला का hearing किया and cowboys के head को भरे बाजार five डण्डा मारने का order अपने soldiers को दिया। भरे बाजार that cowboy was beaten. After that there was complete peace in that kingdom.(छोटे जमींदार ने अपना दाहिना हाथ माथा पर ले गये और पूरा मैदान तालियों और ठहाकों से गूंज उठा.
सुमित बाबू को अभी भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था. वे सोचने लगे कि वे तो इंजीनियरिंग की बातों पर दंगल करने आये थे, लेकिन यहाँ तो इंजीनियरिंग की बात कहीं सुनाई ही नहीं दे रही है. वे इस चक्कर में पड़ गये कि किस गंवार से पाला पड़ा है.
अब पञ्च प्रमुख ने सुमित बाबू से एक कहानी सुनाने को कहा.
(सुमित बाबू का धैर्य भी अब जवाब देने लगा. सो उन्होंने वर्तमान माहौल पर ही हिन्दी में एक कहानी सुनाने का निर्णय लिया) सुमित बाबू:- "मेरे पिताजी को मुझे इंजीनियर बनाने की बड़ी इच्छा थी. मैंने भी उनकी इच्छा पूरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और एक अच्छे सरकारी संस्थान में मेरा दाखिला हो गया. जहाँ तक हो सका मैं भी मन लगाकर पढ़ाई करने लगा. इसी बीच मैंने सुना कि हमारे इलाके के जमींदार साहेब के बेटे का भी दाखिला किसी निजी इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया है तो मुझे बड़ी ख़ुशी हुई. जब मैंने अपने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की परीक्षा पास की और घर आया तो मुझे लगा कि इलाके के ही एक बड़े घर के इंजिनियर से मुलाकात होगी और नौकरी मिलने तक इलाके में ही मजे करेंगे, लेकिन यहाँ तो मुझे वह इंजिनियर दोस्त नहीं मिला जिसकी मैंने कल्पना की थी. आज मुझे अपने इलाके में अच्छी शिक्षा की बहुत कमी की अनुभूति हो रही है."
अब सुमित बाबू चुप हो गये. पूरे मैदान में सन्नाटा छाया रहा. लोगों को भी इस जबानी-दंगल में अब मजा नहीं आ रहा था. पंचों ने भी समझ लिया कि दूसरा चक्र भी समाप्त हो गया  है. पञ्च लोगों ने अपना निर्णय सुनाने हेतु आपस में गहन-मन्थन प्रारम्भ किया।
    अन्त में पञ्च प्रमुख ने अपना फैसला सुनाया। उन्होंने बताया कि पंचों द्वारा बनाये गये नियमों के अनुसार ही दोनों इंजीनियरों के बीच शास्त्रार्थ का खेल संपन्न हुआ है. इसमें छोटे जमींदार इंजीनियर ने तीन सवाल पूछे जिनका जवाब सुमित बाबू नहीं दे पाये। सुमित बाबू ने जो कहानी सुनाई वह तो हम ही लोगों की बोली में थी. इन पंचों को लगा कि सुमित बाबू ने अपनी ही कहानी सुना दी है. जब छोटे जमींदार इंजीनियर सवालों का जवाब दे रहे थे या कहानी सुना रहे थे तो हमलोगों के समझ में कुछ नहीं आया लेकिन उनकी बातों पर दर्शकों के बीच से समय-समय पर तालियां भी खूब बजी जबकि सुमित बाबू जब बोल रहे थे तो पूरे मैदान में सन्नाटा छाया रहा और किसी ने भी ताली नहीं बजायी। इन सब बातों से पञ्च लोग सर्वसम्मत रूप से इस नतीजे पर पँहुचे हैं कि छोटे जमींदार इंजीनियर साहेब सुमित बाबू से ज्यादा पढ़कर आये हैं और लगता है कि सुमित बाबू ने अपने पिता और माँ के गहनों पर शहर में जाकर पढाई करने के बजाय मौज-मस्ती की है. इस तरह इस शास्त्रार्थ के खेल में छोटे जमींदार इंजीनियर साहेब को विजयी घोषित किया जाता है.
    इस फैसले से जमींदार साहेब और उनके इंजीनियर बेटे की सर्वत्र जय-जयकार होने लगी. छोटे जमींदार के तो पैर आजकल जमीन पर ही नहीं पड़ रहे थे. उन्हें अपनी जीत हेतु अपनायी गयी Tactics पर गर्व हो रहा था. इसके विपरीत सुमित के पिता असलियत को तो समझ रहे थे लेकिन किम्कर्त्तव्यविमूढ़ थे. सुमित बाबू को अपने इलाके के लोगों की मानसिकता और उनके अल्पज्ञान पर दुःख हो रहा था, लेकिन उनकी बात को सुनने वाला कोई नहीं था. इस परिस्थिति में सुमित बाबू को चुप रहना ही बेहतर लगा और वे अपनी खेती में समय काटने हेतु जुट गये. अब सुमित बाबू कभी-कभार अपने पोस्ट ऑफिस भी जाने लगे और अपने डाकिया से सम्पर्क बढ़ाने लगे. उन्हें हर दिन अपनी नियुक्ति पत्र आने की प्रतीक्षा रहती थी. जल्दी ही उन्हें अपने डाकिया बाबू के आने की आहट हुई. वे दौड़ कर डाकिया बाबू के पास गये और भावातिरेक से अपना नियुक्ति पत्र प्राप्त किया और डाकिया बाबू जो उनसे उम्र में बड़े थे का पैर छूकर उनका आभार व्यक्त किया और अपने पास से उन्हें पाँच रुपये उपहार में दिया। डाकिया बाबू के पूछने पर कि पत्र में खुशखबरी लायक क्या है सुमित बाबू ने बताया कि उनके एक अजीज दोस्त का पत्र आया है. डाकिया बाबू चले गये. उसके बाद सुमित अपने घर जाकर अपनी माँ और पिता का भी पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त किया और पूछने पर वही उत्तर दिया जो उन्होंने डाकिया बाबू को दिया था. सुमित ने अपनी माँ से एक सौ रुपये माँगा और कहा कि यह पैसे की उसकी आखिरी मांग है.
    सुमित की माँ को भी लगा कि पढाई पूरा करके घर आने के बाद उसने एक पैसा भी माँगा ही नहीं था और न ही कोई खर्च ही किया था. उन्हें लगा कि सही में सुमित का कोई दोस्त आने वाला है; शायद उसी के स्वागत के लिये उसको कुछ पैसा चाहिये। अतः उन्होंने ख़ुशी-ख़ुशी सुमित को एक सौ रूपया दे दिया। सबसे पहले सुमित इस एक सौ रुपये का एक दुकान से कुछ सामान खरीद कर छुट्टा कराया। अब सुमित उन लोगों को खोजने में लग गया जो छोटे जमींदार की बेतुकी बातों पर तालियां बजाते थे. धीरे-धीरे सुमित को दर्जन भर छोटे जमींदार की बेतुकी बातों पर तालियां बजाने वाले मिल गये. सुमित बाबू दो दिनों में ही उन तालियां बजाने वाले लड़कों से सम्पर्क साधने में सफल हो गये. वे अब उन सब से मेल-जोल बढ़ाना प्रारम्भ कर दिया। उसके बाद उसने पंचों और पञ्च प्रमुख से सम्पर्क साधा। सुमित के पास अपनी बेइज़्ज़ती का शालीन बदला लेने हेतु एक अनोखा योजना थी, लेकिन उसके पास उस योजना को पूरा करने हेतु समय तीन दिन ही बचा था क्योंकि उसके बाद उसे अपनी नयी नौकरी पर जाकर अपना योगदान देना था.
    सुमित पञ्च प्रमुख के पास गया और उनका पैर छू कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया उन्हें इलाके की एक बहुत पुरानी परम्परा की याद दिलायी, जिसके अनुसार किसी घटना में विजयी पक्ष को एक बड़ा जलसा(प्रीति भोज) देना पड़ता था. पञ्च प्रमुख अपने पंचों से सलाह लेकर इसमें अपनी सहमति दे दी. पञ्च प्रमुख और सभी पञ्च जमींदार साहेब से जलसा हेतु अनुरोध करने की बात भी स्वीकार कर ली. अब सुमित ताली बजाने वालों से मिलकर जलसा की बात बतायी और जलसा की मांग को जायज ठहराने लगे. कुछ ही घंटों के बाद पञ्च प्रमुख से सुमित को पता चला कि जमींदार साहेब ने जलसा हेतु अपनी हामी भर दी है और तीन दिन बाद ही दोपहर बाद चार बजे जलसा होने की तिथि और समय भी तय कर दी है. अब तो इसे सुनकर सुमित बाबू मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए. वे अब अपनी योजना को पूरा करने में जी जान से जुट गये. सुमित अपने कम पैसों से ही पञ्च प्रमुख, पञ्च लोगों और ताली बजाने वालों की खैनी आदि से खूब स्वागत करते रहते थे.
    सुमित को पता चल गया था कि जमींदार साहेब का बहुत कुछ सामान बगल के बाजार के एक बड़े दुकान से उधारी पर आता है. सुमित ने अपनी योजनानुसार एक पञ्च को जमींदार साहेब के लिये जलसा सामग्री की खरीदारी हेतु एक किराना दुकानदार के नाम पत्र प्राप्त करने को राजी कर लिया। सुमित ने एक दूसरे पञ्च को जलसा में पकवान बनाने हेतु मुख्य खानसामा बुलाने के जमींदार का पत्र प्राप्त करने हेतु भी राजी कर लिया। जमींदार साहेब का दोनों पत्र पंचों के हाथ शाम होते-होते देख कर सुमित के ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. एक पञ्च साहेब स्वयं ही मुख्य खानसामा बुलाने चले गये. किराना दुकानदार के नाम पत्र के साथ समस्या थी- भोजन सामग्री और उसके तेल-मसाला हेतु सूची बनाने की. सुमित ने बताया कि जमींदार साहेब के बेटे की जीत की ख़ुशी का जलसा होने वाला है सो आस-पास के दस-बारह गांव के लोग को तो आना ही चाहिये। अतः पञ्च साहेब को सुमित ने समझा दिया कि किराना दुकानदार स्वयं ही दस-बारह गांव के लोगों के खाने भर सामान भेज दे और जो सामान बच जायेगा उसे वापस कर दिया जायेगा। पञ्च साहेब जमींदार साहेब का उधारी देने का पत्र लेकर बाजार की ओर रवाना हो गये.
    अब बारी थी अगल-बगल के गावों के लोगों तक जमींदार साहेब का जलसा हेतु निमन्त्रण पंहुचाने की. इस काम को सुमित ने सभी ताली बजाने वालों को सौंप दिया। निमन्त्रण में सुमित ने अपने तरफ से एक बात और जोड़ दी कि जलसा में भोजन के बाद सबको छनना भी दिया जायेगा अतः सब लोग अपने साथ जलसा के बाद छनना के रूप पकवान ले जाने हेतु वर्तन भी साथ लेते आवेंगे। इस कार्य को ताली बजाने वाले बेरोजगार युवक तन-मन से करने लगे और अगले दिन शाम तक पूरा भी कर दिया।
    अब सुमित अपनी नौकरी पर जाने की तैयारी करने लगे. परम्परानुसार उक्त जलसा में पराजित सुमित और उसके परिवार को भी निमन्त्रण मिलना चाहिये था, लेकिन सुमित को इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी. जलसा के दिन ही सुमित ने अपने नियुक्ति पत्र को अपनी माँ और अपने पिताजी को दिखया और विलम्बित सूचना हेतु माफ़ी मांगी। उसी दिन सुबह में ही दंगल में एक ताली बजाने वाले युवक ने सुमित घर आकर उनसे क्षमा मांगी और बताया कि छोटे जमींदार को तो उसके संस्थान ने पढाई में दिलचस्पी नहीं लेने के कारण दूसरे ही वर्ष में निकाल दिया था. वे तो अपनी शान बचाने के लिये एक साधारण कॉलेज में पढ़ते रहे. जलसा के दिन ही सुमित अपनी नयी नौकरी पर प्रस्थान कर गये. बाद में पता चला कि जमींदार साहेब के जलसा में इलाके के इतने लोग जुट गये कि बहुतों को छनना की बात तो दूर भोजन भी नसीब नहीं हुआ. उस जलसा में जमींदार साहेब की अधिकांश जमीन बिक गयी और ऊपर से उनकी काफी बेइज़्ज़ती भी हुई. काफी दिनों तक जमींदार साहेब का उक्त जलसा की चर्चा दूर-दूर तक होती रही.
नोट:- यह एक काल्पनिक व्यंग्य ब्लॉग है. इसकी किसी बातों को गम्भीरता से लेने की आवश्यकता नहीं है. अगर इस ब्लॉग के किसी बात से किसी को ठेस पँहुचती हो तो मैं उनसे क्षमा चाहता हूँ. पाठकों की खट्टी-मीठी टिपणियों का सदैव स्वागत रहेगा।
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