Consular Access का एक पुराना प्रकरण

    इमरजेंसी अपने अन्तिम चरण यानि इसके समाप्ति की ओर लग रहा था. वर्ष 1977 के प्रारम्भ में मोतिहारी के कचहरी में धारा 250 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत एक प्रकरण आया था. इस मामले में जेल से छूटकर आये भारतीय मूल के एक ब्रिटिश नागरिक सेठी साहेब(बदला हुआ नाम) ने छः महीने तक बेवजह जेल में डालने हेतु स्थानीय प्रशासन से एक लाख रुपये के मुआबजे की माँग की थी. कचहरी में जानकार लोगों का कहना था कि मोतिहारी कचहरी का यह पहला और अनोखा मामला है. इस कारण लोगों में यह मामला चर्चा का विषय बन गया. यह मामला इसलिये भी चर्चित हुआ कि इमरजेंसी के दिनों में प्रशासन से मुआबजा की माँग करना भी एक बड़ा हिम्मत का काम था.
    यह एक Consular Access का प्रकरण था. सेठी साहेब को बिना VISA के भारत में रहने के आरोप में विदेशी अधिनियम की धारा 14 के अन्तर्गत जेल भेजा गया था. पहले तो सेठी साहेब इमरजेंसी से काफी डर गये थे. कुछ दिन के बाद मोतिहारी जेल में इन्हे लगा कि इन्होने कोई गलती नहीं की है. भारत और ब्रिटेन के एक समझौता के अनुसार कोई भी ब्रिटिश नागरिक छः महीने तक भारत में बिना VISA के रह सकता है. अगर इनका बिना VISA के भारत आना गलत होता तो इन्हे भारत में प्रवेश ही नहीं करने दिया जाता। गिरफ़्तारी के समय सेठी साहेब को लगा कि इमरजेंसी में इस छः माह की अवधि को शायद घटा दिया गया है। सेठी साहेब ने जेल से ही अपने उच्चायोग को इस सम्बन्ध में न्याय हेतु आवेदन दिया था, जिस पर एक ब्रिटिश कौंसुलर मोतिहारी आकर इनसे जेल में मिले थे और इनकी समस्या की जानकारी विस्तार से ली थी तथा शीघ्र छूट जाने का इन्हे आश्वासन दिया था.
    इनके पास का जो भी पैसा, पासपोर्ट, ब्रिटेन वापसी का हवाई टिकट आदि निजी सामान था सबको इनसे गिरफ़्तारी के समय ही स्थानीय प्रशासन द्वारा ले लिया गया था. यह सब सामग्री अब सही सलामत रूप में इन्हे मिल गयी है. इन्हे इस बात का मलाल है कि जब FIR की प्रति प्रतिवेदन के रूप में सात जगह जाती है तो किसी अधिकारी ने इस FIR के औचित्य पर सवाल उठाते हुए इस मामले को यथाशीघ समाप्त करने की कार्यवाई क्यों नहीं की? इस बिन्दु पर प्रश्न क्यों नहीं उठाया कि बिना VISA के इन्हे दिल्ली हवाई अड्डे का आव्रजन विभाग भारत में प्रवेश क्यों करने दिया? 
    दो दिनों के बाद पुनः मोतिहारी कचहरी में पता चला कि सेठी साहेब ने अपना स्थानीय प्रशासन से एक लाख रुपये मुआबजा का आवेदन न्यायलय से वापस ले लिया है. इस बात पर इस प्रकरण पर पुनः कचहरी में चर्चा जोर पकड़ने लगी. लोग यही जानने को उत्सुक थे कि अब कौन सी बात के चलते सेठी साहेब ने अपना मुकदमा वापस ले लिया। एक जानकर से पता चला कि सेठी साहेब को हर पन्द्रह दिन पर न्यायलय में पेशी और जेल छः महीने बिताने से व्यवस्था और कानून की बहुत जानकारी हो गयी थी. सेठी साहेब का प्रकरण काफी मजबूत था और उन्हें मुआबजा मिलना भी लगभग निश्चित था. अपनी गलती का अहसास होने पर स्थानीय प्रशासन ने एक्सप्रेस स्पीड से मामला सेठी साहेब के पक्ष में निपटाकर उनसे माफ़ी मांग लिया है. शायद सेठी साहेब को अब अपने वतन, अपने समाज और अपने परिवार की याद सताने लगी है.   
इमरजेंसी में नियम-कानून की अनदेखी से भी लोगों को कष्ट झेलना पड़ा था. कुछ लोगों को राजनैतिक विरोध के कारण तो कुछ लोगों को कर्मचारियों/अधिकारियों की मनमानी के कारण भी जेल जाना पड़ा था. अन्य तरीकों से भी बहुतों को एमर्जेन्सी की ज्यादतियों को झेलना पड़ा था.
    मेरा भी उन दिनों मोतिहारी कचहरी में आना-जाना रहता था और सेठी साहब के प्रकरण से मुझे भी इसके बारे में ज्यादा जानने की उत्सुकता हो गयी थी। जब उनका सब मामला निपट गया था तब मैंने हिम्मत जुटाकर उनसे कुछ सवाल पूछने की अनुमति मांगी। सेठी साहेब ने अपनी सहमति दे दी। मैंने उनसे मोतिहारी आने का प्रयोजन पूछा। वे हंसने लगे और बोले कि उन्होंने महात्मा गाँधी के चम्पारण के सत्याग्रह आन्दोलन के बारे में कुछ पढ़ा था। जब उन्हें अपने एक कार्य से भारत आने का मौका मिला और काम निपट गया तब उन्होंने सोचा कि चम्पारण जाकर महात्मा गाँधी का एक कर्मस्थल चम्पारण भी घूम लिया जाये। इसी क्रम में वे मोतिहारी आये थे और इधर-उधर घूम ही रहे थे कि पकड़ कर जेल में डाल दिये गये। उन्होंने आगे बताया कि चम्पारण आने का उनका प्रयोजन सिद्ध हो गया है। मैंने आगे पूछा कि जब वे पूरा चम्पारण घूमे ही नहीं तो आपका प्रयोजन कैसे सिद्ध हो गया?
सेठी साहेब:  मैंने काफी कुछ भुगत भी लिया है। मैंने जेल में छः माह जेल में बिताकर और कोर्ट पेशी के क्रम में बहुत लोगों व कैदियों से मिलकर ही चम्पारण के बारे में बहुत कुछ जान लिया है. अब आगे मुझे कुछ विशेष जानने का इरादा भी नहीं है। हाँ एक बात स्पष्ट है कि गाँधी जी ने सत्याग्रह करने का सही जगह चुना था। आज भी परिस्थितियां बहुत ज्यादा नहीं बदली हैं। मुझे अब इस बात की चिन्ता सताने लगी है कि पहले तो मेरा भारत में प्रवास विधि-सम्मत था लेकिन अब तो मेरा भारत में रहना विधि-सम्मत नहीं है क्योंकि अब मेरा भारत प्रवास तय अवधि छः माह से ज्यादा की हो गयी है.
    मैंने सेठी साहेब से कहा कि अब तो आपके पास जेल और न्यायलय का कागज है तब चिन्ता की क्या बात है?
सेठी साहेब: अभी भी एमरजेंसी चल रही है. अगर कोई पुनः यहाँ से दिल्ली अपने उच्चायुक्त कार्यालय जाने के क्रम में रास्ते में पकड़ लिया और जेल तथा न्यायलय सब कागजातों को जाली बताकर मुझे जेल में डाल दिया तब क्या होगा? 
    इसके बाद मुझे कोई और सवाल करने की हिम्मत नहीं हुई और मैंने उनसे विदा लिया। पता नहीं क्यों मैं आज भी सेठी साहेब का उक्त प्रकरण पूरी तरह नहीं भुला पाया हूँ। जब-जब इमरजेंसी की बात चलती है मुझे यह प्रकरण याद आ जाता है। आज विएना कन्वेंशन पर खूब चर्चा हो रही है. इस घटना से विएना कन्वेंशन में दिये गये कौंसुलर एक्सेस की प्रासंगिकता को अच्छी तरह समझा जा सकता है. 
नोट:- मेरा उद्देश्य किसी को बदनाम करना नहीं है। अगर किसी को इस ब्लॉग के किसी बात से ठेस पँहुची हो तो मैं उनसे क्षमा मांगता हूं। इमरजेंसी एक संवैधानिक व्यवस्था है. भविष्य में कभी भी इमरजेंसी लग लग सकती है. अगर कभी पुनः इमरजेंसी लगे तो इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिये कि किसी को बेवजह परेशानी न हो.
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