नयी सरकार के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ

    हर नयी सरकार को विरासत में काफी उलझी हुई समस्यायें मिलती हैं. शायद नयी सरकार को भी निम्न चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है:-
1. सरकार पर विकराल कर्ज:- मीडिया की ख़बरों के अनुसार हमारे देश पर करीब 57 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है. यह तो आर्थिक विशेषज्ञ ही बता सकते हैं कि इस आकार का कर्ज हमारी अर्थ-व्यवस्था के विकास में सहायक है या बाधक। कर्ज की राशि को अनुत्पादक कार्यों में भी खर्च किया जाता रहा है. जैसे नेताओं और नाकरशाहों को घुमाने-फिराने में यानि "जावत जीवेत सुखम् जीवेत, ऋणम् कृत्वा घृतम् पिवेत". इस स्थिति को बदलना होगा।  

2. हमारे सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों पर जरुरत से ज्यादा कर्ज:- अभी इंडियन एयर लाइन्स/ एयर इंडिया पर सबसे ज्यादा कर्ज है.

3. हमारे सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों में जरुरत से ज्यादा स्टाफ:- जरुरत से ज्यादा कर्मचारी होने से उनकी श्रम-उत्पादकता घट रही है.

4. हमारे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का बढ़ता NPA:- मीडिया की ख़बरों से पता चलता है कि हमारे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की अनर्जक सम्पत्ति ज्यादा बढ़ रही है. पेशेवर करजखोर कर्ज नहीं लौटा रहे हैं. इनके कर्ज को धीरे-धीरे बैंक के लाभ से सामंजित किया जा रहा है. तीन साल में ऐसे कर्ज को पूरी तरह write off किया जा रहा है. इस कारण बैंक अपने ग्राहकों की अपेक्षित सेवा नहीं कर पा रहे हैं.
    अगर स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक निजी क्षेत्र के बैंकों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पायेंगे। इस ओर शीघ्र ध्यान देने की जरुरत है.

5. मशीनीकरण से कम होते रोजगार:- प्रायः सभी क्षेत्रों में मशीनीकरण का प्रभाव महशूस किया जा रहा है. उदारीकरण और वैश्वीकरण के इस दौर में इससे बचना मुश्किल है. मशीनीकरण तकनीकि रोजगार तो बढ़ा रहा है लेकिन उससे कई गुणा ज्यादा कम कुशल कामगारों के रोजगार के अवसर कम कर रहा है.

6. बढ़ती जनसँख्या:- हमारे जन-गणना विभाग के 2011 के जनसँख्या वृद्धि दर(1.7% प्रतिवर्ष) के हिसाब से हमारी जनसँख्या लगभग 80000+ प्रतिदिन बढ़ रही है, लेकिन हमारी व्यवस्था उतने लोगों के लिए रोजगार के अवसर एवम् मूलभूत संरचनायों का सृजन नहीं कर रही है.

7. हमारी सरकार बदलने वाली है, लेकिन नयी सरकार की नीतियों को लागु करने की जवाबदेही पुराने नौकरशाहों पर ही होगी। यह अमेरिका नहीं है, जहाँ के राष्ट्रपति 500 मुख्य पदों पर नियुक्ति करते हैं. नौकरशाहों की वफ़ादारी नये सरकार के प्रति धीरे-धीरे बदलेगी तबतक नये मन्त्रियों का जोश ठण्ढा पड़ जाने की सम्भावना है.

8. कुछ सरकारी खर्च घटाने से मीडिया, नौकरशाह और हमारी शक्तिशाली न्यायपालिका के आक्रामक हो जाने की सम्भावना है. इसे का कुछ नमूना हम 1977 में अपने देश में और दो साल पहले मालदीव में देख चुके हैं.

9. लोगों की उम्मीदें नयी सरकार से बढ़ जाती है और स्मार्ट फोन के आगमन से नेताओं के वादे Audio-Video के रूप में दर्ज हो रहे हैं. हमारी नयी पीढ़ी के लोग हमारे जन-प्रतिनिधियों से बोलेंगे "उल्लू मत बनाओ". अगर नयी पीढ़ी के लोगों की उम्मीदें पूरी नहीं हुई; जन-शिकायतों की उपेक्षा की गयी, तो उनमें निराशा फैलेगी और यह निराशा कमजोर सरकार होने पर हिंसा में बदल सकती है.

10. सेना को मजबूत बनाना:- मीडिया की ख़बरों के अनुसार हमारे हथियार, जहाज और वायुयान पुराने पड़ चुके हैं, जिनके रख-रखाव खर्चीले होते जा रहे हैं. जैसा कि कहा जाता है कि कमजोर राष्ट्र के बहुत शत्रु होते हैं. अतः हर हाल में हमें मजबूत होना ही पड़ेगा। इसके लिये कठोर निर्णय लेने होंगे।

11. राजनैतिक निवेश का प्रभाव:- पूंजीपति राजनैतिक दलों को करोड़ों रुपये का चन्दा दे रहे हैं. वास्तव में यह उनका राजनैतिक दलों में निवेश है. नयी सरकार इन पूंजी पतियों का दबाव कैसे झेल पाती है - यह तो समय ही बतावेगा। अब के पूंजीपति कोई गुजरे ज़माने का भामा शाह तो हैं नहीं, इसने महाराणा प्रताप को मदद की थी.
12. इंटरनेट का तेज फैलाव के चलते ट्विटर  जैसे कई Social Media के माध्यम से लोगों के सामाजिक जुड़ाव का दायरा बढ़ रहा है. भविष्य में यह दायरा बढ़ता ही जायेगा। बड़े नेता की कोई भी गलती का तीव्र प्रतिकार सम्भावित है. इस प्रति अगले सरकार की असम्वेदनशीलता आन्दोलन का रूप ले सकती है. 
     अगर इन चुनौतियों का सामना प्रभावशाली ढंग से नहीं किया तो 2017 में मध्यावधि चुनाव सम्भावित है.
To be completed soon.
https://twitter.com/BishwaNathSingh

Reader's contributions---
1. Subsidy:- State subsidy is increasing day by day. It is eating our Tax-Payer's money. New Government will have to pay urgent attention on this point.
https://twitter.com/ 


                

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