भारत-चीन युद्ध के समय एक सैनिक का सम्बोधन!

Kamta Singh
    1962 में भारत-चीन युद्ध चल रहा था. युद्ध के मोर्चे पर भारत की स्थिति अच्छी नहीं चल रही थी. आम जनता और हमारे सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए जगह-जगह जन-सभायें हो रही थीं. गया(बिहार) के गाँधी मैदान में भी एक सभा हुई थी. इस जन-सभा का जोर-शोर से प्रचार हुआ था. प्रचार में सिर्फ इतना कहा गया था कि कोई बड़ा फौजी जेनरल आने वाला है. प्रचार से प्रभावित होकर बगल के फ़ोटो वाले श्री कामता सिंह भी अपने गाँव से उस गाँधी मैदान में समय से करीब पन्द्रह मिनट पहले ही पँहुच गये थे.
    आगे कि कहानी श्री कामता सिंह के सुनाये अनुसार है. पूरा गाँधी मैदान भर गया था, लेकिन लोग अभी भी आ रहे थे. सरकारी व्यवस्था नहीं के बराबर थी, लेकिन अनुशासन बना हुआ था. जिसको जहाँ जगह मिला वहीँ बैठ गया. जिसको जगह नहीं मिल रहा था वह मैदान के किनारे खड़ा होने लगा. तबतक जानकारी मिल गयी थी कि आज सेवा निवृत्त जेनरल करियप्पा साहेब आने वाले हैं. कोई कह रहा था कि करियप्पा साहेब बहुत काले हैं, कोई कह रहा था कि वे बहुत कड़क हैं.
     इसी बीच हल्ला हुआ कि जेनरल साहेब आ गये हैं. मञ्च संचालक ने उनके आगमन की घोषणा की और लोगों से खड़े होकर उनका स्वागत करने का अनुरोध किया। सभी लोग उनके स्वागत में खड़े होकर जिन्दाबाद के नारे लगाकर चुपचाप बैठ गये. वे तो काले के बदले गोरे, लम्बे-चौड़े खूबसूरत बुजुर्ग निकले।सबसे पहले एक कवि को कविता पढ़ने के लिये बुलाया गया. कवि:- "कैलाश वाले शंकर का त्रिनेत्र खुलेगा और चीनी सब भष्म हो जायेंगे, हमलोग चीनियों को चीनी समझ कर पानी में घोल कर पी जायेंगे।........"
     इतने में जेनरल साहेब उठे और माइक पकड़ कर बोले "कविजी बैठ जाओ, कविता पाठ से चीनी नहीं मानेंगे। माताओं और बहनो! अपना गहना देश को दान कर दो, एक-एक पैटन टैंक नब्बे-नब्बे लाख रुपये में आता है. अभी भारी मात्रा में हथियार खरीदना पड़ेगा। माताजी! अपना एक बेटा फौज़ में भेजो, जो नवजवान फ़ौज़ में भर्ती न हो पायें, वे अपने घर के पास खंदक खोदें, युद्ध तेज होने वाला है, रात को सभी प्रकार की रौशनी अपने घरों में न करे. बहने जितना जल्दी हो सके नर्स की ट्रेनिंग करें और नवजवान जल्दी से फर्स्ट एड का ट्रेनिंग कर लें. जब चीनी अपने हवाई जहाज से आप पर बम गिराने आवें तो झट से अपने बनाये खंदक में चले जाएँ। ऐसे तो खंदक में जानी नुकसान कम होता है, फिर भी जख्मी हो जाने पर जल्दी से जल्दी उनका फर्स्ट एड करें और महिलायें नर्स बनकर जख्मियों की सेवा करें।
     यह आप सब याद रखें कोई भी युद्ध मार के जीता गया है, मर कर नहीं। हमारे जवानों को युद्द के मोर्चों पर जाना ही होगा। इलाके में कोई अजनवी किसी भी वेश में आवे उनको पकड़ कर पुलिस के हवाले करें। एक बार फिर से सुन लें, देश आप सबसे कुछ मांग रहा है. देश बचेगा तो फिर से आप सब अपना-अपना तरक्की कर लोगे और देश भी फिर से उठ खड़ा होगा। समय कम है; मुझे आगे जाना है."
    जेनरल साहेब के इस भाषण ने महिला-पुरुष, जवान-बूढ़ा सब में जोश भर दिया। पूरा जन-समूह ने जेनरल साहेब के साथ "भारत माता की जय, वन्दे मातरं" नारा लगाया। उसके बाद जेनरल साहेब तो आगे के किसी जन-सभा के लिये चले गये और जन-सभा में आये लोग अपने-अपने गाँव-घर चले गये. प्रायः सभी लोग जेनरल साहेब की बातों को उनका आदेश समझ कर उस पर अमल करने लगे. पूरे समाज में गजब का उत्साह भर गया.
     कुछ दिनों के बाद समाचार आया कि नेहरूजी ने हार मान कर युद्ध रोक दिया है। इससे पूरे इलाके में घोर निराशा फ़ैल गयी. कहाँ तो सब जगह देश पर गहना, जान और श्रम न्योछावर की चर्चा सब जगह हो रही थी और अब देश की हार की खबर मिली। सब लोग एक ही सवाल कर रहे थे कि जब हमारे पास करियप्पा साहेब जैसा जेनरल है और सब लोग मर-मिटने को तैयार हैं तब हमारा देश कैसे हार सकता है? समय बीतने पर जब धीरे-धीरे उस युद्ध की हक़ीक़त लोगों को मालुम होने लगी तो लोग नेहरू को कोसने लगे.            
     जन-सभा को सम्बोधन करने वाले कोई साधारण सैनिक नहीं बल्कि मशहूर सेनापति रहे जेनरल करियप्पा( Gen KM Cariappa )थे. आज भी गया जिले में करियप्पा साहेब को लोग बड़े आदर के साथ याद करते हैं. इस कहानी को सुनाने वाले कामता सिंह अपने बेटों के साथ टैगोर हिल के पास राँची में रहते हैं. इन्हे लोग नीम बाबा भी कहते हैं, क्योंकि इन्होने दो साल तक कड़ी देख-भाल कर टैगोर हिल के निचले हिस्से में लगाये गये नीम के पौधों को बचाया था.
नोट:- मेरी भूमिका सिर्फ इस कहानी को लेखबद्ध करना भर है. मुझे विश्वास है कि यह कहानी सही है.
https://twitter.com/BishwaNathSingh
Comments through Twitter---
1. https://twitter.com/colvks :- 'To me there are only two stans- Hindustan and Faujistan'- Gen KM Cariappa
2. https://twitter.com/ajitbhinder "As 12 years old, I remember lacs of families donating gold ornaments during62&65 wars.No such spirit today"

Comments

  1. Thanks for sharing this story. Ye Bharat ka durbhagya tha ki desh ko Nehru jaisa pradhanmantri mila. Iske liye sirf aur sirf Gandhi jimmedaar hain. Agar Subhash ya Patel ji pratham pradhan mantri hote to yah desh aaj atma samman ke liye taras nahin raha hota.

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  2. We ought to have punished Nehru then & there for China defeat, we would not have suffered their dynastic rules thereafter.

    Had he agreed to Gandhi's Proposal that Jinha be made first PM of combined India, We would be seeing today Hindustan, and not India & Pakistan, with both suffering one from Rampant Corrupt Systems and other from Extremists.

    Under Bapu's proposal, which I have heard from my ancestors, was to be made Ist President, but he declined as he would have had lesser powers than Jinnah.

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